Sunday, December 18, 2011

भरोसे का प्रतिक

पार्क में देखा.... पति पत्नी एक दुसरे का हाथ पकड़कर चल रहे थे । डेली का उनका रूटीन था । जान पहचान वाले थे । एक दिन उनके घर जाने पर कारण पूछ ही लिया । पत्नी बोली ...साथी का हाथ पकड़ कर चलना भरोसे का प्रतिक और विश्वास का नाम है । यह हम दोनों को हमसफ़र होने की याद दिलाता है ।

Thursday, November 24, 2011

वाह !


वाह !
एकदम रंगीन
इतने पारंगत
नक़ल भी छिप गया
इसे कहते है ...कलाकारी
सच !
हम एक रंगमंच पर
नाच रहे
अपनी अपनी
कला को बेचकर
क्या दिखावा है !

Saturday, October 22, 2011

पानी का रंग कैसा!


पानी का रंग कैसा! आज पता ही नहीं चलता .कभी शुद्ध हवा और पानी मिला करता था ,हमारे बुजुर्ग बताते है की वे  कुआँ और तालाब का पानी भी पी  लेते थे . हालांकि वह कोई अच्छा काम नहीं था फिर भी इतना तो तय है, की आज की तरह पानी दूषित तो नहीं रहता होगा .
अभी एक योजना के तहत लवणीय जल को मीठे जल में बदल कर पेय जल की समस्या को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है .यह बहुत ही खर्चीला पड़ेगा पर इसके अलावा हमें कोई दूसरा उपाय छोड़ा कहाँ है ? पर इतना खर्च एक गरीब राष्ट्र के लिए करना संभव नहीं है .अतः यह तय है की भविष्य में गरीबों को शुद्ध पानी नहीं मिलने वाला .
बोतल बंद पानी का दाम भी सुरसा के मुंह की तरह बढ़ ही रहा है और भूमिगत पानी का क्या हाल है ? एक अनजान आदमी भी बता सकता है .

Saturday, October 15, 2011

आप करप्ट पर्सनाल्टी है क्या !


गरीबी ! मतलब बिमारी और एक बेहूदा मजाक !
एक अपराध ! किसी सज्जन के मुंह से सुना,
सज्जन उपरी गिलास के थे ,सो उन्हें निचली गिलास 
के सभी लोग बीमार दिखे ! उनकी फिलासफी के मुताबिक़ 
ये लोग हाईली अनसिविलाइज्द पैदा होते है !
न खाने का ढंग ,न पहनने ओढ़ने का ढंग 
वे विश्वासपात्र  नहीं ,चोर होते है!
मेरे प्रतिवाद करने पर भड़क गए ,
और लगे सुबूत देने !
मैंने भी कह दिया की भाई साब ,आप तो खिचड़ी लगते है ,
मुझे तो आपमें उपरी या निचली गिलास के कोई लक्षण दिखते नहीं 
आप करप्ट पर्सनाल्टी है क्या !

Thursday, October 13, 2011

अरमान

कभी सोचता
पेड़ पर 
चढ़ जाऊं 
और फिर 
उतर जाऊं 
बचपन की याद 
समेट कर 
घर लाऊं !

गिरे हुए 
सूखे पत्तों को 
चुन कर 
एक सेज सजाऊं 
उसपर बैठ 
हर दिन 
कह्कहें लगाऊं ! 

Monday, October 10, 2011

जुल्फों की छांव

जुल्फों की छांव से 
मनमोहक 
पर्वत ,पहाड़ 
नदी ,झरने 
बाग़ बगीचों 
की छाँव है !
जहाँ साफ़ 
हवा तो आती है 
यहाँ तो सिर्फ 
और सिर्फ 
दर्द की हवा चलती है !

Friday, October 7, 2011

क्रांति !

निचले पैदान पर जी रहे लोगो को जोड़ कर ही कोई आन्दोलन या क्रांति हो सकती है .उनको समय रहते ही संगठित करना होगा .भारत में रक्तरंजित क्रांति नहीं बल्कि रक्तहीन क्रांति की जरुरत है . किसी भी लोकतान्त्रिक देश में यही क्रांति का सर्वोत्तम रूप हो सकता है .देश एक नए दौर में पहुँच रहा है जहाँ पर उत्साही नौजवानों की जरुरत है ,वे ही क्रांति का नेतृत्व कर सकते है .सभी वर्गों में  समन्वय होना इसकी पहली शर्त है ,दुःख की बात है की हमारे देश में इसी चीज की सबसे बड़ी कमी है .जबतक सभी वर्ग के लोगो में समन्वयन नहीं हो जाता तबतक पूर्ण क्रांति की बात करना बेमानी होगी ...यहीं अंतिम सत्य है .
आज के ज्यादातर नौजवानों को क्रांति का अनुभव नहीं है .अनुभव लेना पड़ेगा ...केवल दिवास्वप्न देखने भर से गरीबों और मजदूरों को न्याय नहीं मिलेगा और न ही क्रांति होगी ....
तो फिर !....क्रांति का पाठ्यक्रम तैयार करो और उसे धरातल पर उतार दो .
आज हमारे साहित्यकारों ,कवियों ,पत्रकारों की कलम चुक गयी है ,पैसे की आहट सुन कर ही लिखती है ...क्रांति के  लिए तो उसमे जंग लग गया है .....तो फिर क्रांति कैसे होगी ?

Friday, September 23, 2011

अब मुस्कुरा भी दो...

मेरा हर ख्वाब तुमसे है । ख़्वाबों में तुझे ही हर रोज पाता हूँ ।
.....और तुम गुमसुम बैठी हो । ये ठीक नही है ....अब मुस्कुरा भी दो ।
मुझे अच्छा लगेगा ।
तुझे देख कर ही तो ख्वाब बुनता हूँ । कैसे तोड़ दूँ ?
ख़्वाबों में ही तुझे तराशा है । कड़ी मेहनत से एक मूरत बनी है ।
कैसे छोड़ दूँ ?
तेरी चमकीली आँखें ...मेरे सपनों की बुनियाद है ।
अब आ जाओ ...देर न करो । ये ठीक नही है ।

Saturday, September 17, 2011

आगे अभी सारा आसमान बाकी है ...

जिंदगी की असली उड़ान अभी बाकी है ,
आपके इरादों का इम्तिहान अभी बाकी है ,
अभी तो नापी है मुट्ठी भर जमीं ,
आगे अभी सारा आसमान बाकी है ......

Saturday, August 27, 2011

मै भी एक गाँधी टोपी लाया हूँ ..


किताबों में पढ़ा था कि १९३० और १९४२ का आन्दोलन कैसे हुआ ? देखा नहीं था कि उस
समय लोगो के मन में देशभक्ति का कैसा जज्बा था ....अन्ना के आन्दोलन में जाने
के बाद पता चला लगा कि हम किसी क्रांति के युग में पहुँच गए है और हमारा जोश
दुगुना हो गया है ...नजदीक से अन्ना को देखने का मौका मिला .....मैंने गाँधी के
बारे में काफी कुछ पढ़ा है और गांधीवाद का प्रशंषक भी हूँ .....कल वाकई लगा कि
अन्ना के रूप में गाँधी को देख लिया....
ज़िन्दगी में मुझे इतनी ख़ुशी कभी नहीं मिली जितनी इस आन्दोलन से जुड़ कर मिली
...ऐसा लगा हमारा भी योगदान है ...और मज़बूत लोकपाल बिल आया तो हम भी कहेंगे कि
हमने इसके लिए आन्दोलन किया था ....हम तो भाई , १० बजे सुबह ही पहुँच गए
रामलीला मैदान ...और सबसे पहले आज के गाँधी को दूर से ही दर्शन किया और उसके
बाद देश भक्ति के गीतों के साथ सुर मिलाया ....लोग स्वेच्छा से आ रहे थे ..उनसे
बात कर ऐसा लगा कि वाकई वे भ्रष्टाचार से बहुत परेशान है ...और उनके अंदर कुछ
करने कि भावना भरी हुई है ...कुछ लोग कहते है कि वे केवल कैमरे के सामने आने के
लिए जा रहे है ...लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगा और फिर इस वजह से इतनी भीड़ कभी नहीं
जुट सकती .ऐसा वही लोग कह रहे है जिन्होंने शारीरिक रूप से वहां पर उपस्थित
नहीं हुए है ....
मुझे तो ऐसा लगा कि लोग अभिभूत है ...इस आन्दोलन से और कई लोग तो ऐसे थे जो
अपने आप को इस आन्दोलन से जुड़ कर धन्य मान रहे थे , उन्हीं लोगों में से मै भी
एक हूँ .....और यह भी याद आया कि वन्दे मातरम् कैसे लोगो में जोश भर देता है
....आज़ादी के समय में भी ऐसा ही हुआ होगा ....जो लोग इसे साम्प्रदायिकता कि नज़र
से देख रहे है उन्हें साम्प्रदायिकता का अर्थ भी नहीं मालूम .....वैसे मै सोचता
हूँ जन लोकपाल जैसे छोटे से मुद्दे के लिए अनशन करना पड़े ...इसका अर्थ है
हमारी लोकतान्त्रिक प्रणाली में कुछ खोट जरुर है .....मै भी एक गाँधी टोपी लाया
हूँ ...और जबतक जन लोकपाल बिल पास नहीं होता ,उसे पहन कर अपनी तरफ से लोगों
को बताने कि कोशिश करूँगा कि ये जन लोकपाल क्या है और किस प्रकार भर्ष्टाचार पर
अंकुश लगाया जा सकता है इसमें आम आदमी का क्या योगदान हो सकता है .........

Monday, August 15, 2011

ये स्टाइल तो यूनिक है.....

शम्मी कपूर कि यादगार फ़िल्में तुम सा नहीं देखा , दिल देके देखो , दिल तेरा
दीवाना , प्रफेसर , चाइना टाउन , राजकुमार ,कश्मीर की कली , जानवर , एन इवनिंग
इन पेरिस , तीसरी मंजिल , अंदाज आदि है.1968 में ' ब्रह्मचारी ' के लिए उन्हें
बेस्ट एक्टर का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला , तो 1982 में 'विधाता ' के लिए बेस्ट
सपोर्टिंग एक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला.
जिंदादिली का नाम शम्मी कपूर .....मैंने बहुत पहले उन पर फिल्माया गया एक गाना
देखा 'दिल देके देखो '.... वे शरीर को तोड़ मरोड़ रहे थे ....मैंने सोचा पता
नहीं, कौन हीरो है और ऐसा क्यों कर रहा है ? ,ये बचपन कि बात है ...बाद में
महसूस हुआ कि उनका ये स्टाइल तो यूनिक है.फिर याहू स्टाइल देखा तो मुझे लगा यार
सच में ये अलग मिटटी का बना है .....जंगली तो मेरी पसंदीदा फिल्मों में से एक
है .....ब्रह्मचारी में उन्होंने वाकई बड़ी संजीदगी के साथ अभिनय कि है .रफ़ी
साहब कि आवाज़ अगर किसी एक एक्टर पर जमी तो वे सम्मी साहब ही थे.....लाल छड़ी
मैदान खड़ी गाने पर एक्ट कर पाना वाकई बहुत मुश्किल था . आज मुझे लगता है, कि
यह शम्मी कपूर का करिश्मा ही था ,जिसने गाने को इतना पॉपुलर बना दिया .....आज
जब वे नहीं है तो बहुत याद आ रही है कि याहू कहने वाला हमारे बीच से चला गया
.....

Friday, August 12, 2011

मिटटी .....


अपनी मिटटी के लिए तड़प 
 क्या होती है ?
 बिछड़ने के बाद जान पाए......

Thursday, August 11, 2011

हमारे अलावा इस ब्रह्मांड में कही और जीवन है ???

आकाश को देख रहा हूँ । कोई छोर नही दीखता । इतना फैला हुआ है ...... डर लग लगता है ।
सोचता हूँ । हमारे अलावा इस ब्रह्मांड में कही और जीवन है ???
अगर नही तो रोंगटे खड़े हो जाते है । इतने बड़े ब्रह्माण्ड में हम अकेले है !विश्वास नही होता ...लगता है , कोई तो जरुर होगा ।
फ़िर सोचता हूँ । आकाश को इतना फैला हुआ नही होना चाहिए । कुछ तो बंधन जरुरी है । भटकने का डर लगा रहता है ।

Sunday, August 7, 2011

कितने रंग !

कितने रंग !
आसमां में 
देखे नहीं 
इस जहाँ में

 मन बेचैन रहता
हर पल 
उन्हें  याद करता
मन नहीं लगता 
इस जहाँ में

रंग भरने की 
तमन्ना थी 
जीवन में 
अकेला देखता रहा 
और पूरा कारवां 
ओझल हो गया

क्या करूँ !
कहाँ जाऊं !
सच कहूँ !
अब मन नहीं लगता 
इस जहाँ में 

Saturday, August 6, 2011

''मनुष्य से श्रेष्ठ कुछ भी नही ''

कहीं पढ़ा था ''मनुष्य से श्रेष्ठ कुछ भी नही ।'' मै भी इस मानव यात्रा का एक पथिक हूँ । पथ की पहचान अभी करनी है । इर्ष्या से ग्रषित नही होना चाहता । गर्व से दूषित भी नही होना चाहता ।
क्या करू?.... अज्ञानता जाती ही नही ।
पाषाण की कठोर छाती को चिर कर अज्ञात पाताल से रस खीचना चाहता हूँ । निरंतर उर्ध्वगामी होना चाहता हूँ ।
क्या करू ?...संवेदनशीलता है ही नही ।

Saturday, July 30, 2011

दिल बेचैन सा है...........

अभी तक चेहरा जेहन में है । दिल बेचैन सा है ... कुछ सूझ नही रहा । पता नही ऐसा क्यों है । सोचता हूँ , आकर्षण किसी एक से बंधकर नही रहता । उसमे चंचलता कूट कूट कर भरी हुई है । पर यह चंचलता ठीक नही है । अब जाकर जाना ।

Saturday, July 9, 2011

मुहब्बत की तितली

कुछ ख़ास था
वो पल
आसमान में लालिमा
आंखों में आईना
प्रेम का ये जहाँ
एक बाग़ में हम
और मुहब्बत की तितली
जब तुम मिली .........
हाय ..वो पल ...

Sunday, July 3, 2011

....और भटक गया !

....अपने को ही पहचान न सका
....और भटक गया
मेरी ज़िन्दगी में कुछ भी खुबसूरत नही
..जो कुछ था उसे भी बहता पाया
....अपने को ही पहचान न सका

दर्द के वीराने में .....
भटकता ही रह गया
कुछ ढूढता ही रह गया
....और एक कंकड़ भी न पा सका

Monday, June 27, 2011

हंसों ना !

हंसों ना !


खूब हंसों

सब हंस रहे है

तुम पीछे कैसे ?

हंसों ना !

मेरी बेबसी पर

लाचारी पर

खूब हंसों

Sunday, May 29, 2011

इतिहास ऐसे लोगों को याद करता है....

कुछ लोग जन्म लेते है ..रूपया कमाते है और परलोक की यात्रा पर निकल जाते है ..ऐसे लोगों को इतिहास याद नही करता .....इतिहास ऐसे लोगों को याद करता है जिन्होंने इस जगत को कुछ दिया हो.

Thursday, May 26, 2011

.मै वह अन्धकार बन गया हूँ ...........

कहने को तो ..... नीला आसमान मेरे चारो तरफ़ लहरा रहा है । पर मेरे लिए एक मुठ्ठी भर भी नही बचा ।
चाहत तो एक मुठ्ठी भर आसमाँ की ही थी । वह भी मुअस्सर नही ।
सूरज की किरणे मुझ पर भी वैसे ही पड़ती है , जैसे दूसरो पर गिरती है । मुझमे गर्मी पैदा करने की
ताकत उसमे नही ।
कौन जानता ...मै वह अन्धकार बन गया हूँ , जिस पर उजाले का कोई असर नही ।

Tuesday, May 17, 2011

शून्य ....

रंगीली दुनिया कभी बेरंग क्यों लगती है ?
ज़िन्दगी इतनी छोटी है ,फ़िर लम्बी क्यों लगती है ?
इंसान दयालु से हैवान कैसे बन जाता है ?
कोई क्यों किसी को छोड़ कर चला जाता है ?
.....अंत में सब शून्य ही क्यों दीखता है ?

Tuesday, April 12, 2011

मन तो खाली है ....

उस उजाले का क्या काम जो सारे शहर में दिख रहा । मन तो खाली है । पहले उसे भरना है । वहां अन्धेरें ने घोंसला बना लिया है ।

Friday, April 8, 2011

आईये हम सब मिलकर उन्हें श्रधांजलि देते है ....

आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री ने 16 वर्ष की उम्र में ही अपनी पहली पुस्तक 'काकली' लिखी थी.
वर्ष 1916 में गया के मैरवा में जन्मे शास्त्री ने मुजफ्फरपुर को अपनी कर्मस्थली बनाया.
उनका आवास निराला निकेतन हिन्दी प्रेमियों का तीर्थ बना रहता था. 
आचार्य की मुख्य रचनाओं में रूप-अरूप, तीर-तरंग, शिप्रा, मेघ गीत, अवंतिका, धूप दुपहर की के अलावा दो तिनकों का घोंसला और एक किरण : सौ झाइयां काफी प्रसिद्ध रही। उन्होंने अपनी आत्मकथा भी लिखा .
हम इस महान आत्मा के जाने बड़े व्याकुल और बेचैन है . आईये हम सब मिलकर उन्हें श्रधांजलि देते है .

Wednesday, April 6, 2011

ऐ मेरे वतन के लोगों....

ऐ मेरे वतन के लोगों
तुम खूब लगा लो नारा
ये शुभ दिन है हम सब का
लहरा लो तिरंगा प्यारा
पर मत भूलो सीमा पर
वीरों ने है प्राण गँवाए
कुछ याद उन्हें भी कर लो -२
जो लौट के घर न आये -२


ऐ मेरे वतन के लोगों 
ज़रा आँख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी
 
जब घायल हुआ हिमालय
खतरे में पड़ी आज़ादी
जब तक थी साँस लड़े वो
फिर अपनी लाश बिछा दी
संगीन पे धर कर माथा 

सो गये अमर बलिदानी
जो शहीद हुए है उनकी 
जरा याद करो कुर्बानी 
जब देश में थी दीवाली
वो खेल रहे थे होली
जब हम बैठे थे घरों में
वो झेल रहे थे गोली
थे धन्य जवान वो आपने
थी धन्य वो उनकी जवानी
जो शहीद..

कोई सिख कोई जाट मराठा
कोई गुरखा कोई मदरासी
सरहद पर मरनेवाला 
हर वीर था भारतवासी
जो खून गिरा पवर्अत पर
वो खून था हिंदुस्तानी
जो शहीद...

थी खून से लथ-पथ काया
फिर भी बन्दूक उठाके
दस-दस को एक ने मारा
फिर गिर गये होश गँवा के

जब अन्त-समय आया तो
कह गये के अब मरते हैं
खुश रहना देश के प्यारों
अब हम तो सफ़र करते हैं
क्या लोग थे वो दीवाने
क्या लोग थे वो अभिमानी
जो शहीद हुए ...
 
तुम भूल न जाओ उनको
इस लिये कही ये कहानी
जो शहीद हुए ...

Thursday, February 17, 2011

मिट्टी की सुगंध

अपनी मिटटी के लिए तड़प 
 क्या होती है ?
 बिछड़ने के बाद जान पाए
  उन्हें सलाम, जो वही रहे 
 हम तो भाई नकली हो गए
 उन हवाओं को सलाम 
 जो उस मिटटी को छू कर आये 
  इन हवाओं में वह खुशबू कहाँ !
 ये तो दूषित और नकली है 
 उस मिटटी के सीने से ,
 लगने का मन कर रहा 
 अब जाकर जान पाए 


Wednesday, February 9, 2011

हंसों ना !

हंसों ना !
खूब  हंसों
सब हंस रहे है
तुम पीछे कैसे ?
 हंसों ना !
मेरी बेबसी पर 
लाचारी पर
 खूब हंसों


Monday, January 31, 2011

आंसू...

आंसू बहते ही रहे
रोक न सका
सब बह गए
आज ज़रूरत है...
तो धोखा दे गए !





Sunday, January 23, 2011

बंद होठ कुछ गए ...

बंद होठ कुछ गए
आँखें बातें करती रही
सपने रंगीन हो गए 
ऐसा नशा छाया,कि
शाम में ही सवेरा हो गया
 हवा में उड़ने लगा
  ...और उड़ता ही चला गया

Sunday, January 16, 2011

पथिक

कहीं पढ़ा था ''मनुष्य से श्रेष्ठ कुछ भी नही ।'' मै भी इस मानव यात्रा का एक पथिक हूँ । पथ की पहचान अभी करनी है । इर्ष्या से ग्रषित नही होना चाहता । गर्व से दूषित भी नही होना चाहता ।
क्या करू?.... अज्ञानता जाती ही नही ।
पाषाण की कठोर छाती को चिर कर अज्ञात पाताल से रस खीचना चाहता हूँ । निरंतर उर्ध्वगामी होना चाहता हूँ ।
क्या करू ?...संवेदनशीलता है ही नही ।

Friday, January 14, 2011

चुपके से....

दिन ढलने के बाद !
चुपके से शाम आ जाती है
कुछ पता ही नहीं चलता
हम देखते रह जाते है !

Tuesday, January 11, 2011

भूदान आन्दोलन

विनोबा भावे ने १९५० -६०  के दशक में भूदान आन्दोलन चलाया ,उसे सफलता भी मिली . कई लोगो ने अपनी जमीने दान में दी ,पर उसका वितरण बहुत बाद में १९६९ से जाकर शुरू हुआ ,अतः उसका फायदा भूमिहीन कृषकों को नहीं मिल सका .कई जमींदारों और भूमिपतियों की नयी पीढ़ी ने जमीनें देने से इनकार कर दिया .इसका सबसे अभिक नुक्सान भूमिहीन कृषकों को हुआ .एक तो वितरण देरी से हुआ और दुसरे सही लोगों को अर्थात जिनको जरुरत थी उन्हें जमीने नहीं दी  गयी .कुछ जमीने तो एकदम बेकार थी जिसपर खेती नहीं की जा सकती थी .इस प्रकार लापरवाही के कारण एक अच्छे प्रयास का अच्छा परिणाम नहीं आ सका जिसकी उम्मीद थी .वैसे भूदान आन्दोलन को सफलता सबसे अधिक उन क्षेत्रों में मिली जहाँ पर भूमि सुधार आन्दोलन को सफलता नहीं मिल पायी थी .बिहार ,ओड़िसा और आंध्र प्रदेश में इसे सबसे अधिक सफलता मिली थी .यहाँ पर भूमि सुधार कार्यक्रम के सफल न हो पाने के कारण इसका भी कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा और फिर बहुत लोग अपनी बातों से मुकर भी गए .अगर  विनोबा भावे के जिन्दा रहते यदि भूमि वितरण का काम किया जाता तो इसे अधिक सफलता मिलती .आज भारत में खाद्य सुरक्षा की समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है , इसका एक प्रमुख कारण भूमि का सही वितरण न हो पाना और भूमि सुधार कार्यक्रम का सफल न हो पाना भी है .

Sunday, January 9, 2011

भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों ने मिलकर इस काम को अंजाम दिया है .अब उन्हें सजा देने की बारी केंद्र सरकार और भारत की न्यायपालिका की है...

कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजन समिति और सुरेश कलमाड़ी की मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं. कम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल को कॉमनवेल्थ गेम्स से जुड़े कॉन्ट्रैक्ट में गड़बड़ी मिली है.पता चला है की  खेल से जुड़े उपकरण बाजार से ज्यादा कीमत पर खरीदे गए.

यह एक खतरनाक प्रवृति को जन्म दे रहा है तथा ऐसी सोच बन रही है की कुछ भी करो अंत में  बच ही जाना है .भारत के उज्जवल भविष्य के लिए इस खतरनाक प्रवृति पर अंकुश लगाना होगा और जो गुनेहगार है उन्हें एक समय सीमा के अंदर सजा दिया जाना चाहिए .

दिल्ली में 3 से 14 अक्तूबर तक कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन हुआ जिसमें संभावना जताई जा रही है कि 70 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए. कॉमनवेल्थ गेम्स से संबंधित प्रोजेक्ट में हुए खर्चों की कैग जांच कर रही है. कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजन समिति पर भ्रष्टाचार, खरीदारी में धांधली, कॉन्ट्रैक्ट चुनिंदा और खास लोगों को दिए जाने, बाजार से ज्यादा कीमत पर उपकरणों को खरीदने के आरोप लगे हैं.
भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों ने मिलकर इस काम को अंजाम दिया है .अब उन्हें सजा देने की बारी केंद्र सरकार और भारत की न्यायपालिका की है , तभी देश की आम जनता का भरोशा वर्तमान व्यवस्था पर कायम हो सकता है .

Wednesday, January 5, 2011

हर रहस्य का राज प्रकृति में समाहित है ...इसे जानने के लिए प्रकृति की गोद में जाना होगा.

किसी ने मुझसे कहा था की ईश्वर ने आँखें दी है तो उसे खुला रखो .हर जगह तुम्हे कुछ न कुछ सीखने को मिल जायेगा .सच कहा था,उस सज्जन ने ! हर वक्त और हर जगह हम कुछ न कुछ सीखते रहते है .आँखें खुली रखने पर इंसान सक्रीय  रहता है और जीवंत भी .सबसे अच्छी बात है... प्रकृति के निकट जाकर सीखना .हाँ इसके लिए वक्त देना होगा .सारे सवालों और उलझनों को प्रकृति की गोद में बैठकर सुलझा सकते है ,पर इसके लिए प्रकृति से प्यार करना होगा एवं उसे समझना होगा .
हर रहस्य का राज प्रकृति में समाहित है ...इसे जानने के लिए प्रकृति की  गोद में जाना होगा. आज हम  प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर अपनी जीत का जश्न मना रहे है ,यह बहुत दुखद है .....लोग अपनी सुख सुविधाओं के चक्कर में प्रकृति को बर्बाद कर रहे है ...पर हम यह नहीं जानते , हम अपने ही और अपने बच्चों के फ्यूचर को बर्बाद कर रहे है .