Wednesday, July 31, 2013

तेलंगाना के गठन की घोषणा कर सरकार ने मधुमक्खी के छतें में हाथ डाल दिया है...

अंततः यूपीए की समन्वय समिति और कांग्रेस वर्किंग कमिटी की मंजूरी मिल जाने के बाद अलग तेलंगाना राज्य का बनना तय हो गया । यह देश का 29वां राज्य होगा।मेरा मानना है की यह फैसला देर से लिया गया और चुनावी माहौल में लिया गया.… सरकार की नज़र 2014 पर है।  काश! ऐसे फैसले प्रशासनिक आधार पर लिए जाते।  भारत की जनसँख्या जिस तरह से बढ़ी है इसके अपने फायदे या नुक्सान हो सकते है , पर इससे निश्चित रूप से प्रशासन की पहुँच आम आदमी तक कठिन हो गया है अतः सरकार को चाहिए की एक नए आयोग का निर्माण करे जो अन्य  नए राज्यों की संभावनाओं का आकलन कर सके।

सरकार ने मधुमक्खी के छतें में हाथ डाल दिया है। तेलंगाना के गठन की घोषणा होने के कुछ ही देर बाद गोरखालैंड के लिए गोरखा रीजनल अथॉरिटी के सीईओ बिमल गुरूंग ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के एक समर्थक ने गोरखालैंड के समर्थन में कलीमपोंग शहर के दंबरचौक में आत्मदाह की कोशिश की। तेलंगाना के गठन पर सहमति के बाद कई अन्य छोटे राज्यों के गठन की मांग ने जोर पकड़ लिया है। हरित प्रदेश, विदर्भ, पूर्वांचल, गोरखालैंड, बुंदेलखंड जैसे कई छोटे राज्यों की मांग सामने आने लगी है। क्या अब  छोटे राज्य बनाने की प्रक्रिया यहीं से शुरू हो जाएगी।

 नागपुर से कांग्रेस सांसद ने  अलग विदर्भ के लिए बकायदा सोनिया गांधी को चिट्ठी भी लिख दी है। मायावती ने तेलंगाना के गठन का स्वागत करते हुए यूपी को 4 हिस्सों में बांटने की वकालत कर डाली।तेलंगाना के गठन के साथ ही बोडोलैंड की मांग कर रहे नेताओं ने भी अपने विरोध प्रदर्शनों को और तेज करने की चेतावनी दी।

 तेलंगाना में 10 जिले शामिल किए गए हैं। हैदराबाद 10 वर्षों तक दोनों राज्यों की साझा राजधानी होगा। इसके बाद तटीय आंध्र के किसी हिस्से में आंध्र प्रदेश की राजधानी बनाई जाएगी जबकि हैदराबाद तेलंगाना राज्य की ही राजधानी रहेगा।तटीय आंध्र, तेलंगाना से अलग होगा और यह रायलसीमा के साथ मिलकर आंध्र प्रदेश बनेगा। कांग्रेस ने तेलंगाना को आंध्र प्रदेश के 23 में से 10 जिले देकर राज्य की तकरीबन आधी लोकसभा सीटें देने की कोशिश की है। विधानसभा की 294 सीटों में से प्रस्तावित तेलंगाना को 119 सीटें मिलने की संभावना है।

नए राज्य का नाम रायल-तेलंगाना हो सकता है। तेलंगाना में आदिलाबाद, निजामाबाद, करीमनगर, मेडक, वारंगल, खम्मम, रंगारेड्डी, नालगोंडा, महबूबनगर और हैदाराबाद जिलों के अलावा रायलसीमा के दो जिलों कुरनूल और अनंतपुर को भी जोड़ने का प्रस्ताव है।

तेलंगाना को 1956 में आंध्र प्रदेश में मिलाया गया था. तब से कई बार अलग तेलंगाना राज्य के लिए अभियान किया जा चुका है. साल 2000 में अलग तेलंगाना अभियान ने एक बार फिर जोर पकड़ा और तब से हैदराबाद समेत राज्य के कई हिस्सों में लगातार विरोध प्रदर्शन होते रहे हैं. संप्रग-1 सरकार के साझा न्यूनतम कार्यक्रम में और संसद के संयुक्त अधिवेशन (2004) में राष्ट्रपति के अभिभाषण में सर्वसम्मति से अलग तेलंगाना राज्य के गठन की बात कही गई थी। 9 दिसंबर 2009 को अलग तेलंगाना राज्य बनाने के लिए केंद्र सरकार ने रिपोर्ट माँगी थी. तब से कई बार इस मु्द्दे को लेकर कई बैठक हो चुकी हैं.

नए तेलंगाना राज्य के गठन में राज्य के गठन में छह महीने का वक्त लगेगा। संसद के इसी सत्र में तेलंगाना पर बिल लाया जा सकता है। इसके लिए संसद द्वारा राज्य पुनर्गठन विधेयक को साधारण बहुमत से पारित कराने सहित कई कदम उठाने होंगे। इस विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा में पारित कराने के लिए दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता नहीं होगी।आंध्र प्रदेश राज्य विधानसभा को भी अलग तेलंगाना राज्य के गठन को लेकर एक प्रस्ताव पारित करना होगा।

हैदराबाद तेलंगाना बनने के मध्य एक बड़ी बाधा रहा है। राज्य की अर्थव्यवस्था में हैदराबाद का  महत्व काफी अधिक है। हैदराबाद शहर और उसके पास के इलाके से राज्य के राजस्व का 55 प्रतिशत हिस्सा आता है यानी लगभग 40 हज़ार करोड़ रुपए. इसी तरह केंद्र सरकार को भी आंध्र प्रदेश से मिलने वाले राजस्व का 65 फीसदी हिस्सा यानी तकरीबन 35 हज़ार करोड़ रुपए इसी शहर से मिलता है। हैदराबाद से उत्पाद और सेवाओं का जो निर्यात विदेशों को होता है उसका मूल्य भी लगभग 90 हज़ार करोड़ रुपए का है जिसमें से सॉफ्टवेयर और आईटी सेवाओं का हिस्सा 60 हज़ार करोड़ रुपए का है और शेष भाग दवाओं के उद्योग और दूसरे क्षेत्रों से आता है.

तेलंगाना के लिए आन्दोलन कर रहे लोगों को  मेरी तरफ से बधाई। …. मुझे यह  उम्मीद है कि नए राज्य के गठन के बाद जो भी सरकार बनेगी, वह वहां के लोगो की भावनाओं को समझते हुए पिछड़ेपन को दूर करने का प्रयास करेगी और राजनितिक स्थिरता के लिए भी काम करेंगी। इसके  साथ ही  मुझे यह आशंका  है कि  अगर वहां पर झारखंड  की तरह अस्थिरता उत्पन्न होती है तो तेलंगाना के गठन के मकसद पूरा नहीं होगा। इस निर्णय की  सफलता की जिम्मेदारी हमारे माननीय राजनीतिज्ञों पर निर्भर करता है। साथ ही मुझे यह भी उम्मीद है कि  सरकार सही समय पर द्वितीय राज्य पुनर्निर्माण आयोग का गठन करेगी और अन्य  नए  राज्यों के गठन की  उचित मांगों पर विचार करेगी। हालांकि तेलंगाना के गठन की घोषणा में राजनीति ही दिख रही है।

Tuesday, July 30, 2013

ऐसे माहौल में कोई क्यों इमानदार बनेगा ?

 गौतम बुद्ध नगर की  एसडीएम दुर्गा शक्ति नागपाल को यूपी की अखिलेश सरकार ने सस्पेंड कर दिया। यूपी के सरकारी प्रवक्ता के मुताबिक काम में लापरवाही के चलते कारवाई की गई है।  सरकार ने इस निलंबन पर सफाई दी है कि दुर्गा सांप्रदायिक सौहार्द्र कायम रखने में नाकाम रही हैं।लोगों का मानना है कि खनन माफिया के दबाव में यह कार्रवाई की गयी और यह गलत हुआ।इस निर्णय से सरकार की कार्य प्रणाली पर सवाल उठते है।ऐसा प्रतीत होता है की सरकारें  ऐसे लोगों की कठपुतली होती जा रही है जो अवैध कार्यों में लगे हुए है।

 नागपाल 2009 बैच की आईएएस ऑफिसर हैं। कुछ हफ्तों से ग्रेटर नोएडा में अवैध खनन पर लगाम कसने के लिए नागपाल युद्धस्तर पर काम कर रही थीं। उन्होंने यमुना नदी से रेत से भरी 300 ट्रॉलियों को अपने कब्जे में किया था। नागपाल ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यमुना और हिंडन नदियों में खनन माफियाओं पर नजर रखने के लिए विशेष उड़न दस्तों का गठन किया था। नागपाल ने सस्पेंड होने से पहले ही कहा कि था इन माफियाओं पर कार्रवाई की वजह से धमकियां मिलती हैं।

कई स्थानों पर तो खनन माफियाओं की शक्ति इतनी बढ़ गयी है की वे सम्बंधित अधिकारियों को जान से मारने की धमकी देते रहते है और बंधक भी बना लेते है।  उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार को लोगों ने बहुमत देकर विधान सभा में भेजा और यह उम्मीद किया क़ि  अखिलेश यादव के नेतृत्व में इस बार एक ऐसी सरकार बनेगी जो पिछली सरकारों से अलग होगी लेकिन अभी तक इस सरकार ने ऐसा कोई भी काम नहीं किया है जिससे की लोगों को यह भरोसा  हो सके की यह सरकार दूसरी  सरकारों से अलग है।

उत्तर प्रदेश सरकार बीते डेढ़ साल में आधा दर्जन आईएएस अफसरों के खिलाफ एकतरफा कार्रवाई कर चुकी है. यह सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे में जरूरी है कि मुख्यमंत्री अब अपनी कार्यप्रणाली बदलें. विपक्षी दलों के नेताओं और सेवानिवृत नौकरशाहों ने भी दुर्गाशक्ति के निलंबन को लेकर मुख्यमंत्री के फैसले पर कुछ ऐसे ही सवाल खड़े किए हैं.
 ईमानदार अफसर को इस तरह से अच्छा काम करने के एवज में हटाया जाएगा तो अफसरों में क्या सन्देश जाएगा?  दुर्गा नागपाल को सिविल सर्विसेज नियमावली के विपरीत हटाया गया है. किसी आईएएस अफसर को हटाने से पहले कम से कम उसकी कोई जांच करायी जानी चाहिए थी. इसके अलावा कम से कम डीएम से रिपोर्ट तो ली ही जानी चाहिए थी. बगैर डीएम की रिपोर्ट के ही उन्हें हटा दिया गया.

दुर्गा शक्ति का दोष इतना बड़ा नहीं था की उन्हें इसके लिए निलंबित किया जाय।  इससे जो लोग निर्भय होकर काम करना चाहते है उन्हें निराशा होगी और वे हतोत्साहित होगें।  बच्चों को किताबों में पढाया जाता है की इमानदार बनो , ऐसी घटनाओं से वे क्यों इमानदार बनाने की कोशिश करेंगें या और कोई भी क्यों इमानदार बनेगा जब सरकार ही माफियाओं के आगे घुटने टेक कर इमानदार लोगों को सजा दे रही हो।

Sunday, July 28, 2013

तेज़ाब को गुड बाय कहना ही होगा

आजकल की घटनाएं परेशान करती है …. लगातार कई लड़कियों पर तेज़ाब फेंक पर उनके जीवन को नर्क बनाया जा रहा है …. ऐसे लोग हमारे समाज को कलंकित कर रहे है … सरकार ने तेज़ाब की खुली बिक्री पर रोक लगाने का फैसला लिया है …यह कदम स्वागत योग्य है लेकिन सिर्फ इतने भर से तेज़ाब फेंकने की घटना पर अंकुश नहीं लगने वाला … जो भी व्यक्ति ऐसा करता है उसके खिलाफ ऐसी करवाई होनी चाहिए जिससे की वह दुबारा हिम्मत न कर सके. साथ ही तेज़ाब के विकल्प पर ध्यान देना चाहिए . जिन लड़कियों पर तेज़ाब फेंका जाता है , उनका जीवन नारकीय हो जाता है…वे सामान्य जीवन नहीं जी पाती . समाज और सरकार को उनके प्रति उदारता दिखानी होगी .
बाथरूम साफ करने के लिए तो टॉयलेट क्लीनर के नाम पर तेज़ाब 20-25 रुपए में ही मिल जाता है. दुकानों में हर किसी के लिए तेज़ाब की आसान उपलब्धि बंद हो ताकि उसकी तरह किसी और लड़की को अपनी ज़िंदगी यूँ न गुज़रानी पड़े- बिना आँखों के और पूरी तरह खराब हो चुके चेहरे के साथ.सुप्रीम कोर्ट ने कुछ समय पहले निर्देश भी दिया था कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों की बैठक बुलाई जाए ताकि तेज़ाब की बिक्री को रेगुलेट किया जा सके.
 केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में नियमों का जो मसौदा रखा, उसमें बताया गया है फ़ोटो पहचान पत्र और निवास प्रमाण के बिना तेज़ाब नहीं ख़रीदा जा सकेगा. यही नहीं, तेज़ाब की बिक्री के लिए दुकानदार को भी लाइसेंस लेना होगा.केंद्र सरकार ने अपने प्रस्ताव में यह भी कहा है कि अब
क्लिक करेंतेज़ाब को ज़हर की श्रेणी में रखा जाएगा.

 पॉइजन पजेशंस एंड सेल रूल्स में तेज़ाब को ज़हर की श्रेणी में रखने की बात कही गई है। इसे बेचने के लिए लाइसेंस लेना होगा और बिना फोटो पहचान पत्र लिए यह किसी को बेचा नहीं जाएगा। तेज़ाब खरीदने वाले को अपनी पहचान के अलावा खरीदने की वजह भी बतानी होगी। 18 साल से कम उम्र वालों को तेज़ाब नहीं बेचने का प्रावधान किया गया है। अभी टॉयलेट क्लीनर के नाम पर कोई भी व्यक्ति तेज़ाब खरीद सकता है।
तेज़ाब हमले की शिकार हुई दिल्ली की लक्ष्मी ने 2006 में खुले बाजार में तेज़ाब की बिक्री पर मुकमल पाबंदी लगाने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। जस्टिस आरएम लोढ़ा और जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा कि सरकार अभी सिर्फ गाइडलाइन का ड्राफ्ट  लेकर आई है। जब तक पॉलिसी बनेगी, तब तक देर हो जाएगी।

 वर्ष 2005 में एक युवक का प्रेम-प्रस्ताव देने के कारण दिल्ली की सोलह वर्षीया लक्ष्मी पर तीन युवकों ने तेज़ाब फेंक दिया। जिससे उसकी आंखें, नाक, कान, व गर्दन जल गए। हाथों पर गहरे जख्म हो गए। चेहरा इतना विकृत हो गया कि जब वह अपने घर लौटी तो वहां के सारे शीशे हटा दिए गए थे। उसकी सारी तस्वीरें भी हटा दी गई थी।

महिलाओं पर तेजाबी हमले के ऐसे कई उदाहरण हैं। हालांकि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो से ऐसे मामलों का स्पष्ट आंकड़ा नहीं मिल पाता क्योंकि ये मामले धारा 307 (हत्या का प्रयास), धारा 320 (गम्भीर चोट पहुंचाना) और धारा 326 (घातक हथियारों से जान-बूझकर प्रहार करके चोट पहुंचाने) के तहत दर्ज किए जाते हैं। तथापि कैम्पेन एण्ड स्ट्रगल अगेंस्ट एसिड अटैक्स ऑन विमेन' की एक रपट के अनुसार, सिर्फ कर्नाटक राज्य में ही 1999 से 2007 अर्थात, 9 वर्षों में ऐसे 56 मामले दर्ज किए गए। अनुमान है कि भारत में प्रति वर्ष तेजाबी हमले की 1000 घटनाएं घटती हैं पर रपट 100-150 की ही दर्ज हो पाती है। 18 से 40 वर्ष आयु वर्ग की 80 प्रतिशत महिलाएं विवाह और प्रेम प्रस्ताव को नकारने के कारण ऐसे हमले का शिकार होती हैं।

एसिड अटैक न सिर्फ किसी महिला के चेहरे को खराब कर देता है या उसकी आँखों की रोशनी छीन लेता है लेकिन उसे समाज में दोयम दर्जे का नागरिक बना देता है.जिस्म पर लगे घाव तो सबको दिखते हैं लेकिन ज़हन पर लगे घाव किसी को नज़र नहीं आते. आत्मनिर्भर और ज़िंदादिली से भरपूर एक औरत देखते ही देखते असहाय, दूसरों पर आश्रित महिला बन जाती है.  तेजाब के भयंकर दुष्प्रभावों को देखते हुए भी इसे हथियारों की तरह घातक माना ही नहीं गया है। जबकि दुकानों में दस-बीस रुपयों में खुले आम मिल जाने वाला तेजाब हथियार से भी अधिक घातक है। तेजाबी हमले से पीड़ित को आरंभिक दो-तीन बड़े ऑपरेशानों के बाद भी कई बाद 25-30 ऑपरेशन कराने पड़ सकते हैं, जिसका खर्च हर बार तीन लाख रुपये तक आता है। फिर भी, संक्रमण का ख़तरा सदैव बना रहता है क्योंकि हाइड्रोक्लोरिक एसिड, सल्फ्यूरिक एसिड और नाइट्रिक एसिड मनुष्य की त्वचा के साथ हड्डियों को भी गला देती है.

 वर्ष 2007 में नोएडा के एक सत्रह वर्षीय किशोरी पर पड़ोसी ने तेजाब से प्रहार किया। मैसूर में एक 22 वर्षीया गृहिणी को उसके पति ने सल्फ्यूरिक एसिड मिश्रित शराब पीने के लिए मजबूर किया और दिल्ली की एक फैशन डिज़ाइनर को ऐसे प्रहार का सामना करना पड़ा। उक्त तीनों महिलाएं जीवन की भयावहता से जूझने के लिए विवश कर दी गई। तब उच्चतम न्यायालय ने महिलाओं पर तेज़ाब प्रहार को हत्या से बदतर बताते हुए उनसे निपटने के लिए कठोर कानून की मांग की थी।

  भारत में भी पिछले एक दशक में तेज़ाब हमलों में वृद्धि हुई है. स्वयंसेवी संस्था एसिड सरवाइवल ट्रस्ट इंटरनेशनल के मुताबिक भारत में हर साल एसिड अटैक के करीब 500 मामले होते हैं.कागज़ पर नीति तय होने, उसके कानून बनने और इसे कड़ाई से लागू होने के बीच लंबा समय लग जाता है. आज़ादी के बाद 60 सालों में इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार ही नहीं हुआ.

एसिड सर्वाइवर्स ट्रस्ट इंटरनेशनल के अनुसार दुनिया के करीब 23 देशों में हाल के वर्षों में एसिड हमलों की घटनाएँ हुईं. इनमें अमरीका, ब्रिटेन, अमरीका, ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों के भी नाम हैं. लेकिन ये इन देशों में दूसरी जगहों की अपेक्षा हमलों की संख्या बेहद कम है. महिलाओं पर एसिड हमलों की सबसे अधिक घटनाएँ भारत, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश के अलावा कंबोडिया में दर्ज की गई हैं.ईरान में 2004 में शादी के लिए मना करने पर 24 साल की अमेना पर एक लड़के ने तेज़ाब फेंक दिया था जबकि कंबोडिया में 23 की विवियाना पर एसिड अटैक में उनका चेहरा, हाथ और छाती जल गई थी.

 तेज़ाब हमले के मामले में भारत दुनिया का चौथा सबसे खतरनाक देश है। वर्ष 1967 में बांग्लादेश में, 1982 में भारत में और 1993 में कम्बोडिया में तेज़ाब हमले की पहली घटनाएं घटी। यह सिलसिला कमोबेश निरन्तर जारी है। सरकार ने महिला हिंसा उन्मूलन हेतु प्रतिबध्दता तो दर्शायी, कानून भी बनाये लेकिन यह एक पहलू छूट गया। बाद में भी इस पर ध्यान  नहीं दिया गया। जबकि तेजाब के प्रहार से पीड़ित महिलाओं का पुनर्वास भी आसान नहीं है क्योंकि प्लास्टिक सर्जरी, त्वचा प्रत्यारोपण या पुन: त्वचा उगाना न केवल बहुत महंगा है बल्कि इसमें सफलता की संभावनाएं भी क्षीण हैं।

तेजाब की खुली बिक्री रोकने को लेकर सात साल से चल रहे केस में सुप्रीम कोर्ट ने 18 जुलाई 2013 को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। अदालत ने तेजाब की खुली बिक्री पर प्रतिबंध और पीडि़त को तत्काल आर्थिक सहायता देने के आदेश दिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में तेज़ाब बेचने और खरीदने से जुड़े सभी नियम-कायदे गुरुवार से ही लागू कर दिए। अदालत ने कहा कि यदि बिना पहचान-पत्र देखे तेज़ाब बिका तो पॉइज़न एक्ट 1919 के तहत केस चलेगा। सजा होगी। अब खुले बाजार में वही तेज़ाब बेचा जाएगा, जो त्वचा पर बेअसर हो। जस्टिस आरएम लोढ़ा और जस्टिस फकीर मोहम्‍मद की बेंच ने राज्य सरकारों को आदेश दिया कि वे तेज़ाब हमों को गैर-जमानती अपराध बनाएं। कोर्ट ने सरकारों को तीन महीने के भीतर इस बारे में पॉलिसी लाने के निर्देश दिए।

तेजाब का असर-

हाइड्रोक्लोरिक एसिड, सल्फ्यूरिक एसिड, नाइट्रिक एसिड इंसान की त्वचा के साथ हड्डियां तक गला देती हैं। यानी पीडि़त के लिए दर्दनाक और देखने वालों के लिए असहनीय।

ज्यादातर मामलों में पीडि़त की आंख हमेशा के लिए खराब हो जाती है। इसके अलावा सांस के जरिए तेज़ाब फेफड़ों तक पहुंच गया, तो यह जानलेवा हो जाता है। जैसा, कि दो माह पूर्व मुंबई में प्रीति राठी के मामले में हुआ।

2-3 शुरुआती बड़ी सर्जरी के बाद कई सेकंडरी सर्जरी करनी पड़ती है। कई बार 30-30 सर्जरी भी। हर सर्जरी का खर्च 1-3 लाख रुपए।

लेकिन 3-4 साल भी इन्फेक्शन का खतरा है। झुलसी हुई त्वचा बाकी शरीर में इन्फेक्शन फैलाती है। जले हुए हिस्से पर त्वचा बनने से गठान उभर आती है।

कई बार घावों पर नारियल तेल लगा दिया गया। कंबंल लपेट दिया गया। जिसने उनके ठीक होने की संभावना पूरी तरह खत्म कर दी।

बर्न के आसपास डेड टिशू में इंफेक्शन फैलता है और यही घाव भरने नहीं देता। इंफेक्शन हादसे के महीनों बाद भी हो सकता है।
 तेज़ाब कोई हथियार तो नहीं पर किसी की ज़िंदगी हमेशा के लिए बर्बाद करने या किसी की जान लेने के लिए काफी होता है.

चिकित्सा क्षेत्र में तमाम प्रगति के बावजूद तेज़ाब से प्रभावित चेहरे को फिर से उसके मौलिक स्वरुप में नहीं लाया जा सकता . मेरा तो यह मानना है की ऐसी घटनाएं हमारे समाज को विकृत कर रही है और महिलाओं में खौफ पैदा कर रही है . भारत को हमेशा यह गर्व रहा है की भारतीय संस्कृति  ने महिलाओं को देवी का दर्जा दिया है और महिलाओं का स्थान काफी उंचा माना जाता रहा है …. जब ऐसी घटनाएं होती है तो संस्कृति के पहरेदारों को सामने आना चाहिए और इसका पुरजोर तरीके विरोध करना चाहिए …बल्कि पुरे समाज को इसके खिलाफ खड़ा होना चाहिए . 

Sunday, July 21, 2013

हम अपने अस्तित्व के लिए ही संकट खड़ा कर रहे हैं...

वाराणसी जिन दो नदियों वरुणा और असी से मिलकर बना था, उसमें एक नदी असी विलुप्त हो चुकी है ....


तराई की छोटी नदियां चीनी मिलों और उद्योगों के जहरीले कचरे का नाला बन गई हैं।


गोरखपुर की आमी नदी कभी अमृत जैसा पानी लोगों को देती थी, लेकिन अभी इसका पानी जहरीला हो चुका है...


हम अपने अस्तित्व के लिए ही संकट खड़ा कर रहे हैं...


आजादी के 66 साल बाद भी कश्मीरी अवाम का बाकी देश से वैसा संबंध कायम नहीं हो पाया है जो एक देश के नागरिकों में होता है।

114 साल पहले कश्मीर के पूर्व शासक महाराजा प्रताप सिंह ने वहां रेल चलाने की सोची थी।


विवाह 'लिव-इन' में रहने वाली स्त्री की भी पैतृक संपत्ति में कोई दावेदारी नहीं मानी जाती।

आधुनिक जीवन के साथ पुरुष समाज में नई चीजों के साथ समझौता करने की प्रवृत्ति पैदा हुई है।


पारंपरिक ईरानी मानते हैं कि कुत्ते नाजी होते हैं, उन्हें पालना ठीक नहीं है..


जब तक चिड़ियों के लिए संवेदना नहीं होगी तब तक उन्हें बचाने का कोई भी अभियान सफल नहीं होगा।

शहरों में जिस तरह से ऊंची इमारतें बन रही हैं वह गौरैयों के लिए घातक है।

कीटनाशकों के छिड़काव ने भी कई पक्षियों के लिए समस्याएं पैदा की हैं।

हम अपने अस्तित्व के लिए ही संकट खड़ा कर रहे हैं...