Wednesday, June 10, 2009

नैतिकता ....

नैतिकता ...नाम कुछ सुना हुआ लग रहा है । बचपन में किताबों में पढ़ा था । आज पैसा नैतिकता को खा चुका है । नैतिक आचरण करने वाले लोग मलवे के रूप में ही कभी कभी दिख जाते है ...उदास है बेचारे उन्हें जल्द ही कूडेदान में फेंका जाएगा । जिंदगी भर जिन आदर्शों पर चलते रहे ...उनका यह हाल ...आंखों से देखा नही जाता ।
गिद्धों की नजर उस मलवे पर भी पड़ी है ....उसे भी ख़त्म कर के ही दम लेंगे । सबके सब नैतिक हो जाते है ....बस पैसा होना शर्त है । पैसे से सड़े हुए भी नैतिक बन जाते है ।

5 comments:

  1. panjabi me ek khawat hai...jiske ghar daane uske kamle bhi syane....so aap ne bilkul theek kaha hai....बस पैसा होना शर्त है । पैसे से सड़े हुए भी नैतिक बन जाते है ।

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  2. bilkul sahi kaha mark..
    yahi aaj ki sacchai hai mere dost.

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  3. ये आज का दौर है............ पैसा न सिर्फ नैतिकता बल्कि बहुत ही परिभाषाएं बदल चुका है..... आगे आगे देखिये क्या होता है

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  4. jiske paas paisaa hai use paise ki bhook jyaadaa hai.
    jiske paas paise kam hai use paise ki ichaa rehtee hai.
    jiske paas paise nahin hote us bechaare ko koi ichaa nahi rehtee.
    jhalli gallan.
    jhalli kalam se
    angrezi-vichar.blogspot.com

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