Wednesday, April 29, 2009

समाधान

अन्दर तो छोडिये साब ...छत पर लेट कर भी कोई समाधान नही खोज पता । इसे जड़ता नही कहा जाए तो और क्या ?हालत तो ऐसी है की जब अपनी ही पीडाओं का पता नही तो दूसरों ......!
अभी भी रोटी के संघर्ष को नही जान पाया । कैसे माफ़ किया जाय मुझे ......
घर और मुल्क की गरीबी का कोई प्रभाव नही पड़ा । कैसे माफ़ किया जाय मुझे ......

नीला आसमान....

कहने को तो ..... नीला आसमान मेरे चारो तरफ़ लहरा रहा है । पर मेरे लिए एक मुठ्ठी भर भी नही बचा ।
चाहत तो एक मुठ्ठी भर आसमाँ की ही थी । वह भी मुअस्सर नही ।
सूरज की किरणे मुझ पर भी वैसे ही पड़ती है , जैसे दूसरो पर गिरती है । अफ्शोश !मुझमे गर्मी पैदा करने की
ताकत उसमे नही ।
कौन जानता ...मै वह अन्धकार बन गया हूँ , जिसपर उजाले का कोई असर नही ।

Tuesday, April 28, 2009

एक मोमबती

एक मोमबती हाथ में । जिंदगी की सबसे बड़ी जित है । मन में बसे डर के खिलाफ मोर्चा खोले हुए ..... एक मोमबती ।
मन के अंधेरे को नेपथ्य में धकेल दिया ..... एक मोमबती ।
बुझ गई तो मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी हार होगी ।

रोशनी

एक मोमबती ले निकली हूँ । घुप अँधेरी रात है ।
मेरे लिए नही यह कोई नई बात है । सारे जग में कर दूंगी उजाला ।
हिम्मत है तो रोक कर दिखाओं ।

.................. रोशनी

Friday, April 24, 2009

कीचड़

सड़क पर इस कदर कीचड़ बिछी हुई है ।

हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है ।


यह सही है की घुटनों तक कीचड़ सना है .... भ्रष्टाचार का बोलबाला है । पर किसी न किसी को तो कीचड़ साफ़ करना ही पड़ेगा और वह हम ही क्यों न हो ....

Monday, April 20, 2009

आकाश

आकाश को देख रहा हूँ । कोई छोर नही दीखता । इतना फैला हुआ है ...... डर लग लगता है ।
सोचता हूँ । हमारे अलावा इस ब्रह्मांड में कही और जीवन है ???
अगर नही तो रोंगटे खड़े हो जाते है । इतने बड़े ब्रह्माण्ड में हम अकेले है !विश्वास नही होता ...लगता है , कोई तो जरुर होगा ।
फ़िर सोचता हूँ । आकाश को इतना फैला हुआ नही होना चाहिए । कुछ तो बंधन जरुरी है । भटकने का डर लगा रहता है ।

Friday, April 17, 2009

सपना

एक श्वेत श्याम सपना । जिंदगी के भाग दौड़ से बहुत दूर । जीवन के अन्तिम छोर पर । रंगीन का निशान तक नही । उस श्वेत श्याम ने मेरी जिंदगी बदल दी । रंगीन सपने ....अब अच्छे नही लगते । सादगी ही ठीक है ।

Thursday, April 16, 2009

कदम थिरक रहे है ...

कदम थिरक रहे है । रोको मत । थिरकने दो ।
यह नई दिशा देगा । दिमाग को लचीला बनाएगा ।
जीना सिखलाएगा । यही तो साँसों में दम भरेगा ।
....तो रोको मत । थिरकने दो ।

इरादा

ठान ले तो जर्रे जर्रे को थर्रा सकते है । कोई शक । बिल्कुल नही ।
अभी थोडी मस्ती में है । मौज कर रहे है ।
पर एक दिन ठानेगे जरुर ....

नशा

अगर तूफ़ान में जिद है ... वह रुकेगा नही तो मुझे भी रोकने का नशा चढा है ।
देख लेगे तुम्हारी जिद या मेरा नशा ... किसमे कितना ताकत है ।
तुम्हारी जिद से मेरा सितारा डूबने वाला नही । हम दमकते साए है ।
असर तो जरुर छोड़ेगे ।

Wednesday, April 15, 2009

पारंपरिक पहनावा

कुछ भी हो जाय , हमें पारंपरिक पहनावे को जिन्दा रखना है । यही तो हमारी संस्कृति और तहजीब की निशानी है । पश्चिम की अंधी दौड़ में हम अपने विरासत से खिलवाड़ नही कर सकते । यही तो हमारी पहचान है ।ये हमें भारतीय होने का अहसास दिलाते है । । अगर हमने भारतीयता से मुंह मोड़ लिया तो हमारा आत्मसम्मान रसातल में होगा । तब हम न घर के रहेंगे और न घाट के ।

Monday, April 13, 2009

आजाद ख़याल

आज जरुरत है , आजाद ख़याल की । आजाद ख़याल तो कभी कभी ही आते है । पुराने भरे पड़े है । उन्ही में से आते रहते है । पर जब आजाद ख्याल आते है तो हलचल मचा देते है । कभी कभी ये ख्याल मन बहलाने के तरकीब ही नजर आते है । आजाद ख़याल तो आ जाते है फ़िर दब जाते है । हालात से समझौता कर लेते है । जब यही करना था तो आने का कोई मतलब नही रह जाता । आओ तो पुरी तरह से आओ , नही तो आओ ही मत ।

Friday, April 10, 2009

कंकड़

पानी में कंकड़ डालना अच्छा है । आनंद भी आता है ।
इन्तजार करने का बहाना भी है । ठीक है ...पर कभी कभी ही ।
पानी के लिए जगह ही न बचे । इतना मत डालना । ये ठीक नही ।

सादगी ही जीवन दर्शन है ....

सादगी केवल एक शब्द ही नही , जीवन दर्शन है । सच्चाई का दूसरा नाम । सुन्दरता का प्रतिक ।
इस जमाने में भी कभी कभी दिख जाती है । पर गुमशुम ही रहती है ।
क्या करे ? मजाक नही बनना चाहती ।
सभी की जिंदगी में बुरा समय आता है । आशा रखो ... अंततः जीत सच्चाई की ही होगी । देर भले हो जाय ।

सबेरा

नर्म सबेरा कभी रूह में शामिल था । अब पास भी नही फटकता । कहीं दूर ... चला गया ।
आज भी सबेरा निकलता है । रूप बदल कर । जिसे हम गर्म सबेरा कहते है ।
हमारी प्रकृति में इतना बदलाव ! हजम नही होता ।

सूखे पत्ते

सूखे पत्ते कहाँ गए ? कुछ ख़बर नही । बचपन में बकरियों को खिलाते थे । जिनपर कभी लेटा करते थे । बागों से जिन्हें चुना करते थे ।
अब कहाँ गए होंगे ? कुछ समझ नही आता । बेचारे !
क्या सूखे पत्तों की भाँती हम भी एक दिन सुख जायेगे ? क्या हमारा भी वही हाल होगा ? क्या तब हमें कोई याद करेगा ?
कुछ समझ नही आता ।

Thursday, April 9, 2009

नानी का गाँव

नानी का गाँव । जन्म भी ननिहाल में ही हुआ । पढ़ाई भी वही हुई । भैस भी चराई ।खूब मट्ठा भी पिया । मीठे की भेली चुराई । डंडें भी खाया । खूब दोस्त भी बनाए । सब के सब लफंगें। लफंगों की लिस्ट में नंबर वन भी आया । जिंदगी के सुनहले दिन ननिहाल में ही बीतें । आज फ़िर नानी का गाँव याद आया ।

बचपन का साथी

एक बछडा । उसे काफी प्यार करता था । हरदम उछल कूद मचाता । मेरा दोस्त बन गया । बस्ता फेंक उसी से बात करता । आँखें बड़ी प्यारी थी । जब उसे लगता की मै स्कुल से आ गया तो मेरी ही ओर एकटक देखता रहता ।मै भी उसे निराश नही करता , भागकर उसके पास चला जाता । एक दिन रात में अचानक चला गया । भगवान् ने उसे वापस बुला लिया ।ऐसा लगा... मेरी दुनिया उजड़ गई । बचपन का एक मूक साथी बिछड़ गया । जिंदगी के इस भाग दौड़ में वह हमेशा याद आता है ।
(दोस्त आज भी तुझे हर पल याद करता हूँ )

Wednesday, April 8, 2009

सच कहूँ ... घोर कलयुग आ गया है

वो गंगा । अब नही दिखती । जिसकी आवाज में मधुरता थी । चेहरा देखने के लिए आईने की जरुरत नही थी । जो हमारी प्यास भी बुझाती थी । आज गंदे नाले में बदल गई । उसका कोई दोष नही । वो तो अपने हालत पर रो रही है । उस दिन को याद कर रही है, जब भगीरथ ने धरती पर अवतरित किया । याचना कर रही है ...अब भी छोड़ दो । उसकी आवाज सुनने वाला कोई नही । सच कहूँ ... घोर कलयुग आ गया है ।

काश !

काश ! सभी भेड़ बकरियों की तरह ही निरीह होते । आपस में दौड़ नही होती । कोई किसी को नही मारता । कोई किसी को कुचलता नही । सोचो ! कितना अच्छा होता ।

दिल की प्यास

दिल की प्यास एक दिन जरुर बुझेगी ।
अभी सारा जग धुंआ धुंआ दीखता है ।
हर जगह कंकड़ और पथरीली राहें ही दिखती है ।
आज अन्धेरें का साम्राज्य छाया हुआ है ।
पर , एक दिन सारे जग में उजाला होगा ।
देखना है , अँधेरा कबतक रहता है ।
आस लम्बी है , हटा कर ही दम लेंगे ।

भरोसा

पार्क में देखा.... पति पत्नी एक दुसरे का हाथ पकड़कर चल रहे थे । डेली का उनका रूटीन था । जान पहचान वाले थे । एक दिन उनके घर जाने पर कारण पूछ ही लिया । पत्नी बोली ...साथी का हाथ पकड़ कर चलना भरोसे का प्रतिक और विश्वास का नाम है । यह हम दोनों को हमसफ़र होने की याद दिलाता है ।

Monday, April 6, 2009

आँखें

आँखें जब बात करती है, तो सब सुनते है । बोलता कोई नही । वहां शब्दों की जरुरत नही । उन आंखों में गजब का आकर्षण होता है । कहानी ख़ुद ब ख़ुद बयां हो जाती है ।

आईना देखो

आईना देखो । सच्चाई दिखेगी ।
झूठे ख्वाब टूट जायेगे ।
हकीकत सामने आ जायेगी ।
जिंदगी का मकसद मालूम हो जाएगा ।
सारी हसरतें पुरी हो जायेगी ।

खुला गगन सबके लिए है

उजाले को पी अपने को उर्जावान बना
भटके लोगो को सही रास्ता दीखा
उदास होकर तुझे जिंदगी को नही जीना
खुला गगन सबके लिए है , कभी मायूश न होना
तुम अच्छे हो, खुदा की इस बात को सदा याद रखना

स्वेत श्याम का आनंद

स्वेत श्याम का अपना महत्व है । अपना आनंद है । उसे भी पसंद करो । रंगीन के आगोश में आकर उसे भूल जाओ ...यह न्याय नही है । वहां तुम्हे सादगी मिलेगी । तुम्हारी यादों को ताजा करेगी । तब तुम अपनी जड़ों से जुड़ पाओगे ।
प्राकृतिक छटा के नजदीक जाओ । वहां खुशियाँ बिखरी मिलेगी । उन्हें समेट लो । अन्यत्र भटकने से कुछ हासिल नही होगा । जिंदगी का अन्तिम सत्य वही है । अब भी जान लो ।

जिंदगी एक दौड़ है

जिंदगी एक दौड़ है । दौड़ना है । अपने से ही जीतना है । अपने से ही हारना भी है । जिंदगी का सबसे बड़ा रहस्य तो यही है ,जिसे हम जान नही पाते ।

वक्त नही है ..

आज कल किसी के पास ज्यादा पढ़ने के लिए वक्त ही नही है । लंबे और बड़े लेख तो लोग देखते ही छोड़ देते है । कभी उन्हें काफी नुकशान भी उठाना पड़ता है । पर वे इसकी परवाह नही करते । कम शब्दों में भी बातें कही जा सकती है । सरल व सहज बातें असर भी करती है । कभी कभी तो वे दिलों दिमाग पर छा जाती है । सरल शब्दों के असर से तो मै नही बच पाया। आप पर भी कुछ न कुछ असर तो जरुर दिखेगा ।
नई डगर और नया सफर को पसंद करो । यहाँ किसी का अनुसरण नही करना है । अपने रास्ते ख़ुद बनाना है । अपनी लौ को बुझने मत दो । लड़ों तूफानों से .... एक दिन दुनिया बदल सकते हो ।

Sunday, April 5, 2009

प्यार

मेरी कामना है । सूरज की तपती धुप तुझ पर कभी न पड़े ।
तुम कही भी रहो । तुम्हारी जिंदगी चलती ही रहे ।
मै तो कुछ भी नही । मेरा साया भी तुझ पर न पड़े ।

जिंदगी की कहानी

पत्थर पर लेटी हुई गुडिया , जिंदगी की कहानी बयान करती है । हम कोमल समझते है । वो पत्थर को भी मात दे देती है । हम उसे फूलों की सेज समझ बैठते है । वो हमें दिन में ही तारें दिखला देती है ।

लज्जा और हया

लज्जा और हया शब्द तो म्यूजियम में रखने योग्य हो गए है । लोगो को दिखाया जायेगा ... ये कभी भारत के अनमोल धरोहर होते थे । लोग विश्वास नही करेगे और बहस शुरू हो जायेगी ।

खुशी

कुछ नया करो , जिसमे खुशी मिले । काम बहुत छोटा ही क्यों न हो । इश्वर है न , वह निर्णय लेगा । तो फ़िर लोगो की बातों पर क्यों जाते हो ?वो तुम्हे खुशी नही दे सकते ।

शाम ढल चुकी है

शाम ढल चुकी है । रात आएगी । खामोशी लाएगी । सपने ,सपनों में आकर हलचल मचायेगे । जिंदगी तार तार हो जाएगी ।

काली घटा

* काली घटा और सावन का कोई भरोशा नही । बरसे न बरसे ।
* पूरब की लालिमा और तन्हाई बड़ा कष्ट देती है ।
सूरज को निगल सकता हूँ ,शर्त है , कुछ मिले ।
तेज दौड़ सकता हूँ ,शर्त है ,कोई मंजिल तो दिखे ।

सरल

सरल व संछेप ही सफलता का राज है । इसी में पुरी दुनिया सिमटी हुई है । पुरा पन्ना जिसे नही समझा सकता उसे एक शब्द ही समझा देता है ।