Thursday, February 17, 2011

मिट्टी की सुगंध

अपनी मिटटी के लिए तड़प 
 क्या होती है ?
 बिछड़ने के बाद जान पाए
  उन्हें सलाम, जो वही रहे 
 हम तो भाई नकली हो गए
 उन हवाओं को सलाम 
 जो उस मिटटी को छू कर आये 
  इन हवाओं में वह खुशबू कहाँ !
 ये तो दूषित और नकली है 
 उस मिटटी के सीने से ,
 लगने का मन कर रहा 
 अब जाकर जान पाए 


Wednesday, February 9, 2011

हंसों ना !

हंसों ना !
खूब  हंसों
सब हंस रहे है
तुम पीछे कैसे ?
 हंसों ना !
मेरी बेबसी पर 
लाचारी पर
 खूब हंसों