हे किशन ,
यातना से क्या घबराना
दुःखों से क्या भागना
आओ साहित्य रचे
शब्दों को अमर कर दे
आओ विषपान करें
और नीलकंठ बन जाएँ !
आओ उस राह चलें
जो मुक्ति मार्ग हो
इस मुक्ति की राह पर
अपने को कुर्बान कर दें
एक नया अम्बर निर्माण करें !
आओ काँटों को चुनकर
उसे कला का नाम दें
मन में
आस्था का संचार करें
परिवर्तन बिन जीवन निस्तेज है
आओ परिवर्तन का गुणगान करें !
आशा के पर लग गए और तुम अभी उड़े नहीं क़यामत का इन्तजार कर रहे क्या ? प्यारी चीज थी तो क्या हुआ .. अब तो रहा नहीं , उस प्यार का लोभ... अब तो छोड़ दो !
Tuesday, September 11, 2012
Wednesday, September 5, 2012
स्पर्श
एक अनजान आदमी
नदी की धारा के साथ बहता हुआ
कल्पनातीत ख्यालों में डूबा
लहरों से बातें करता हुआ
थपेड़ों को चीरता
चला जा रहा है !
अचानक
कुछ सकुचाता हुआ
लहरों को छू लिया
अब व्यग्र हो सोच रहा
कहीं लहरें मैली तो नहीं हो गयी
उसके स्पर्श से !
नदी की धारा के साथ बहता हुआ
कल्पनातीत ख्यालों में डूबा
लहरों से बातें करता हुआ
थपेड़ों को चीरता
चला जा रहा है !
अचानक
कुछ सकुचाता हुआ
लहरों को छू लिया
अब व्यग्र हो सोच रहा
कहीं लहरें मैली तो नहीं हो गयी
उसके स्पर्श से !
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