Tuesday, September 11, 2012

हे किशन ( आत्म साक्षात्कार )

हे किशन ,
यातना से क्या घबराना
दुःखों से क्या भागना
आओ साहित्य रचे
शब्दों को अमर कर दे
आओ विषपान करें
और नीलकंठ बन जाएँ !

आओ उस राह चलें
जो मुक्ति मार्ग हो
इस मुक्ति की राह पर
अपने को कुर्बान कर दें
एक नया अम्बर निर्माण करें !

आओ काँटों को चुनकर
उसे कला का नाम दें
मन में
आस्था का संचार करें
परिवर्तन बिन जीवन निस्तेज है
आओ परिवर्तन का गुणगान करें !


Wednesday, September 5, 2012

स्पर्श

एक अनजान आदमी
नदी की धारा  के साथ बहता हुआ
कल्पनातीत ख्यालों में डूबा
लहरों से बातें करता हुआ
थपेड़ों को चीरता
चला जा रहा है !

अचानक
कुछ सकुचाता हुआ
लहरों को छू लिया
अब व्यग्र हो  सोच रहा
कहीं लहरें मैली तो नहीं हो गयी
उसके स्पर्श से !