Monday, January 31, 2011

आंसू...

आंसू बहते ही रहे
रोक न सका
सब बह गए
आज ज़रूरत है...
तो धोखा दे गए !





Sunday, January 23, 2011

बंद होठ कुछ गए ...

बंद होठ कुछ गए
आँखें बातें करती रही
सपने रंगीन हो गए 
ऐसा नशा छाया,कि
शाम में ही सवेरा हो गया
 हवा में उड़ने लगा
  ...और उड़ता ही चला गया

Sunday, January 16, 2011

पथिक

कहीं पढ़ा था ''मनुष्य से श्रेष्ठ कुछ भी नही ।'' मै भी इस मानव यात्रा का एक पथिक हूँ । पथ की पहचान अभी करनी है । इर्ष्या से ग्रषित नही होना चाहता । गर्व से दूषित भी नही होना चाहता ।
क्या करू?.... अज्ञानता जाती ही नही ।
पाषाण की कठोर छाती को चिर कर अज्ञात पाताल से रस खीचना चाहता हूँ । निरंतर उर्ध्वगामी होना चाहता हूँ ।
क्या करू ?...संवेदनशीलता है ही नही ।

Friday, January 14, 2011

चुपके से....

दिन ढलने के बाद !
चुपके से शाम आ जाती है
कुछ पता ही नहीं चलता
हम देखते रह जाते है !

Tuesday, January 11, 2011

भूदान आन्दोलन

विनोबा भावे ने १९५० -६०  के दशक में भूदान आन्दोलन चलाया ,उसे सफलता भी मिली . कई लोगो ने अपनी जमीने दान में दी ,पर उसका वितरण बहुत बाद में १९६९ से जाकर शुरू हुआ ,अतः उसका फायदा भूमिहीन कृषकों को नहीं मिल सका .कई जमींदारों और भूमिपतियों की नयी पीढ़ी ने जमीनें देने से इनकार कर दिया .इसका सबसे अभिक नुक्सान भूमिहीन कृषकों को हुआ .एक तो वितरण देरी से हुआ और दुसरे सही लोगों को अर्थात जिनको जरुरत थी उन्हें जमीने नहीं दी  गयी .कुछ जमीने तो एकदम बेकार थी जिसपर खेती नहीं की जा सकती थी .इस प्रकार लापरवाही के कारण एक अच्छे प्रयास का अच्छा परिणाम नहीं आ सका जिसकी उम्मीद थी .वैसे भूदान आन्दोलन को सफलता सबसे अधिक उन क्षेत्रों में मिली जहाँ पर भूमि सुधार आन्दोलन को सफलता नहीं मिल पायी थी .बिहार ,ओड़िसा और आंध्र प्रदेश में इसे सबसे अधिक सफलता मिली थी .यहाँ पर भूमि सुधार कार्यक्रम के सफल न हो पाने के कारण इसका भी कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा और फिर बहुत लोग अपनी बातों से मुकर भी गए .अगर  विनोबा भावे के जिन्दा रहते यदि भूमि वितरण का काम किया जाता तो इसे अधिक सफलता मिलती .आज भारत में खाद्य सुरक्षा की समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है , इसका एक प्रमुख कारण भूमि का सही वितरण न हो पाना और भूमि सुधार कार्यक्रम का सफल न हो पाना भी है .

Sunday, January 9, 2011

भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों ने मिलकर इस काम को अंजाम दिया है .अब उन्हें सजा देने की बारी केंद्र सरकार और भारत की न्यायपालिका की है...

कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजन समिति और सुरेश कलमाड़ी की मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं. कम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल को कॉमनवेल्थ गेम्स से जुड़े कॉन्ट्रैक्ट में गड़बड़ी मिली है.पता चला है की  खेल से जुड़े उपकरण बाजार से ज्यादा कीमत पर खरीदे गए.

यह एक खतरनाक प्रवृति को जन्म दे रहा है तथा ऐसी सोच बन रही है की कुछ भी करो अंत में  बच ही जाना है .भारत के उज्जवल भविष्य के लिए इस खतरनाक प्रवृति पर अंकुश लगाना होगा और जो गुनेहगार है उन्हें एक समय सीमा के अंदर सजा दिया जाना चाहिए .

दिल्ली में 3 से 14 अक्तूबर तक कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन हुआ जिसमें संभावना जताई जा रही है कि 70 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए. कॉमनवेल्थ गेम्स से संबंधित प्रोजेक्ट में हुए खर्चों की कैग जांच कर रही है. कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजन समिति पर भ्रष्टाचार, खरीदारी में धांधली, कॉन्ट्रैक्ट चुनिंदा और खास लोगों को दिए जाने, बाजार से ज्यादा कीमत पर उपकरणों को खरीदने के आरोप लगे हैं.
भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों ने मिलकर इस काम को अंजाम दिया है .अब उन्हें सजा देने की बारी केंद्र सरकार और भारत की न्यायपालिका की है , तभी देश की आम जनता का भरोशा वर्तमान व्यवस्था पर कायम हो सकता है .

Wednesday, January 5, 2011

हर रहस्य का राज प्रकृति में समाहित है ...इसे जानने के लिए प्रकृति की गोद में जाना होगा.

किसी ने मुझसे कहा था की ईश्वर ने आँखें दी है तो उसे खुला रखो .हर जगह तुम्हे कुछ न कुछ सीखने को मिल जायेगा .सच कहा था,उस सज्जन ने ! हर वक्त और हर जगह हम कुछ न कुछ सीखते रहते है .आँखें खुली रखने पर इंसान सक्रीय  रहता है और जीवंत भी .सबसे अच्छी बात है... प्रकृति के निकट जाकर सीखना .हाँ इसके लिए वक्त देना होगा .सारे सवालों और उलझनों को प्रकृति की गोद में बैठकर सुलझा सकते है ,पर इसके लिए प्रकृति से प्यार करना होगा एवं उसे समझना होगा .
हर रहस्य का राज प्रकृति में समाहित है ...इसे जानने के लिए प्रकृति की  गोद में जाना होगा. आज हम  प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर अपनी जीत का जश्न मना रहे है ,यह बहुत दुखद है .....लोग अपनी सुख सुविधाओं के चक्कर में प्रकृति को बर्बाद कर रहे है ...पर हम यह नहीं जानते , हम अपने ही और अपने बच्चों के फ्यूचर को बर्बाद कर रहे है .