Saturday, October 22, 2011

पानी का रंग कैसा!


पानी का रंग कैसा! आज पता ही नहीं चलता .कभी शुद्ध हवा और पानी मिला करता था ,हमारे बुजुर्ग बताते है की वे  कुआँ और तालाब का पानी भी पी  लेते थे . हालांकि वह कोई अच्छा काम नहीं था फिर भी इतना तो तय है, की आज की तरह पानी दूषित तो नहीं रहता होगा .
अभी एक योजना के तहत लवणीय जल को मीठे जल में बदल कर पेय जल की समस्या को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है .यह बहुत ही खर्चीला पड़ेगा पर इसके अलावा हमें कोई दूसरा उपाय छोड़ा कहाँ है ? पर इतना खर्च एक गरीब राष्ट्र के लिए करना संभव नहीं है .अतः यह तय है की भविष्य में गरीबों को शुद्ध पानी नहीं मिलने वाला .
बोतल बंद पानी का दाम भी सुरसा के मुंह की तरह बढ़ ही रहा है और भूमिगत पानी का क्या हाल है ? एक अनजान आदमी भी बता सकता है .

Saturday, October 15, 2011

आप करप्ट पर्सनाल्टी है क्या !


गरीबी ! मतलब बिमारी और एक बेहूदा मजाक !
एक अपराध ! किसी सज्जन के मुंह से सुना,
सज्जन उपरी गिलास के थे ,सो उन्हें निचली गिलास 
के सभी लोग बीमार दिखे ! उनकी फिलासफी के मुताबिक़ 
ये लोग हाईली अनसिविलाइज्द पैदा होते है !
न खाने का ढंग ,न पहनने ओढ़ने का ढंग 
वे विश्वासपात्र  नहीं ,चोर होते है!
मेरे प्रतिवाद करने पर भड़क गए ,
और लगे सुबूत देने !
मैंने भी कह दिया की भाई साब ,आप तो खिचड़ी लगते है ,
मुझे तो आपमें उपरी या निचली गिलास के कोई लक्षण दिखते नहीं 
आप करप्ट पर्सनाल्टी है क्या !

Thursday, October 13, 2011

अरमान

कभी सोचता
पेड़ पर 
चढ़ जाऊं 
और फिर 
उतर जाऊं 
बचपन की याद 
समेट कर 
घर लाऊं !

गिरे हुए 
सूखे पत्तों को 
चुन कर 
एक सेज सजाऊं 
उसपर बैठ 
हर दिन 
कह्कहें लगाऊं ! 

Monday, October 10, 2011

जुल्फों की छांव

जुल्फों की छांव से 
मनमोहक 
पर्वत ,पहाड़ 
नदी ,झरने 
बाग़ बगीचों 
की छाँव है !
जहाँ साफ़ 
हवा तो आती है 
यहाँ तो सिर्फ 
और सिर्फ 
दर्द की हवा चलती है !

Friday, October 7, 2011

क्रांति !

निचले पैदान पर जी रहे लोगो को जोड़ कर ही कोई आन्दोलन या क्रांति हो सकती है .उनको समय रहते ही संगठित करना होगा .भारत में रक्तरंजित क्रांति नहीं बल्कि रक्तहीन क्रांति की जरुरत है . किसी भी लोकतान्त्रिक देश में यही क्रांति का सर्वोत्तम रूप हो सकता है .देश एक नए दौर में पहुँच रहा है जहाँ पर उत्साही नौजवानों की जरुरत है ,वे ही क्रांति का नेतृत्व कर सकते है .सभी वर्गों में  समन्वय होना इसकी पहली शर्त है ,दुःख की बात है की हमारे देश में इसी चीज की सबसे बड़ी कमी है .जबतक सभी वर्ग के लोगो में समन्वयन नहीं हो जाता तबतक पूर्ण क्रांति की बात करना बेमानी होगी ...यहीं अंतिम सत्य है .
आज के ज्यादातर नौजवानों को क्रांति का अनुभव नहीं है .अनुभव लेना पड़ेगा ...केवल दिवास्वप्न देखने भर से गरीबों और मजदूरों को न्याय नहीं मिलेगा और न ही क्रांति होगी ....
तो फिर !....क्रांति का पाठ्यक्रम तैयार करो और उसे धरातल पर उतार दो .
आज हमारे साहित्यकारों ,कवियों ,पत्रकारों की कलम चुक गयी है ,पैसे की आहट सुन कर ही लिखती है ...क्रांति के  लिए तो उसमे जंग लग गया है .....तो फिर क्रांति कैसे होगी ?