tag:blogger.com,1999:blog-50960854521833753212024-03-12T20:25:36.520-07:00जीवन के रंग .....आशा के पर लग गए और तुम अभी उड़े नहीं
क़यामत का इन्तजार कर रहे क्या ?
प्यारी चीज थी तो क्या हुआ ..
अब तो रहा नहीं ,
उस प्यार का लोभ...
अब तो छोड़ दो !mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.comBlogger184125tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-13332652571478011232022-09-03T05:42:00.003-07:002022-09-03T05:42:49.043-07:00अंत<p> <span style="font-size: 17px;">अंत की शुरुआत तो हमारी सोच के विकृत होने से ही हो जाती है। अंत बाद में दिखाई देता है।सोच का विकृत होना ही मृत्यु है। शरीर भले ही बाद में जलाया जाता है। अंत का दृश्य दिखाई नहीं देता,इसका मतलब यह नहीं कि वह अंत नही है। यह मिथक टूट भी सकता है या फिर इसी मिथक के साथ इस दुनिया से जाने का समय भी हो जाता है।</span></p><br />
<!--/data/user/0/com.samsung.android.app.notes/files/clipdata/clipdata_bodytext_220903_181133_408.sdocx-->mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-6386816978431670922022-09-03T03:05:00.002-07:002022-09-03T03:05:08.005-07:00प्रार्थना।<p> छह साल का भोला एक गड्ढे में मछली पकड़ रहा था।भोला के हाथों से बार-बार गरई फिसल जा रही थी। वह परेशान होकर कहा:</p><p>' हे गरई महाराज अगर तुम मेरे पकड़ में आ जाओगी तो मैं भगवान जी को दो लड्डू चढ़ाऊंगा।'</p><p>इसके बाद वह एकाग्र हो पुनः गरई के सामने आने की प्रतीक्षा करने लगा।</p>mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-75306823545713684232022-09-03T03:03:00.002-07:002022-09-03T03:03:23.435-07:00चुपचाप ठुसो।<p>बनारसी खाट पर बैठे चिल्ला रहा था। कलपतिया ने उसे खाना देते हुए कहा:</p><p>'बकवास मत करो। चुपचाप ठुसो। मुझे अभी दो और घरों में बर्तन मांजने जाना है। तबतक बच्चे भी ईस्कूल से आ जायेगें।'</p><p>इतना कहकर वह भनभनाते हुए बाहर निकल गई।</p>mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-9358491988345919872021-02-21T16:40:00.001-08:002021-02-21T16:49:50.056-08:00मौनमौन वरदान है <div>और अभिशाप भी</div><div>दो रास्तें है </div><div>अब तय करना है </div><div>कि चुनाव किसका हो</div><div><br /></div><div>दोराहे पर खड़ा राहगीर</div><div>सोच रहा </div><div>कदम किधर बढायें</div><div>मौन को कैसे साधें </div><div>विकट समय है</div><div>निर्णयन की घड़ी है</div><div>वरदान या अभिशाप
</div>mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-27742274060007997642020-02-11T03:27:00.002-08:002020-02-11T03:27:24.874-08:00यह खून लाल ही रहेगा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #1c1e21; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; margin-bottom: 6px;">
यह खून लाल ही रहेगा<br />--------------------<br />पैरों तले खिसक गई जमीन<br />मै धूल फांकता रह गया<br />गर्दन के निशान अभी मिटे भी नहीं थे<span class="text_exposed_show" style="display: inline; font-family: inherit;"><br />तभी यह एहसास हुआ</span></div>
<div class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1c1e21; display: inline; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px;">
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px;">
कुछ साहित्य वास्तव में बकवास है<br />जो चारणों द्वारा रचित है<br />पारलौकिक चरण वंदना<br />और अप्रतिम गुलामी<br />चारण साहब को ही मुबारक</div>
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
माफ़ करें<br />यह खून लाल ही रहेगा<br />और लाल ही बहेगा<br />भले आप मुझे पटखनी दे दी</div>
</div>
</div>
mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-14853189455050127822020-02-11T03:26:00.000-08:002020-02-11T03:26:24.814-08:00 चन्द्रकुमार उर्फ़ चंदू लगातार सीढियाँ चढ़ता जा रहा।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #1c1e21; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; margin-bottom: 6px;">
1) चन्द्रकुमार उर्फ़ चंदू लगातार सीढियाँ चढ़ता जा रहा। मन में लालसा लिए हुए देव दर्शन की। दमे की बिमारी को दबा कर। अन्य दर्शनार्थियों से प्रेरित होकर तीन मील चढ़ गया। अभी आठ मील जाना है।<br />'हे भगवान् ! अब नहीं चला जाता ' कहते हुए एक वीरान शीला पर बैठ गया। हाँफते हुए सोच रहा- काश ! देव दर्शन यहीं हो जाते।</div>
<div style="background-color: white; color: #1c1e21; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
2) बच्चे ईश्वर के खूबसूरत उपहार होते है। उन्हें प्रेम ही देना चाहिए। दु:ख तब होता है जब उनसे कुछ समय पहले जन्म लिए हुए कुछ विद्वान् लोग बच्चों को बुद्धिही<span class="text_exposed_show" style="display: inline; font-family: inherit;">न समझ कर लताड़ लगा देते है। अथवा कुछ थोड़े धनी पर धरती के लिए बोझ दुष्टात्मा ...गली के बच्चों को हिकारत भरी नज़रों से देखते है।</span></div>
<div class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1c1e21; display: inline; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px;">
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px;">
2) सुखद और कामयाब जीवन के लिए हमें कुछ ऐसी स्वस्थ आदतें विकसित करनी चाहिए जो लगातार हमारे साथ चले। यह आसान नहीं है पर किया जा सकता है। हाँ इसे डेवेलप करने में सालों लग सकते है। आदत हमारी रूचि के अनुसार हो सकता है। हमें जो सबसे अधिक अरुचिकर लगता हो वह भी आदत में बदल जाय तो फिर हमेशा हमारे साथ ही रहता है।</div>
</div>
</div>
mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-32067641313519323052020-01-24T22:08:00.001-08:002020-01-24T22:08:46.370-08:00ट्रेन भागी जा रही है।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
ट्रेन भागी जा रही है।<br />
--------------------------------------------<br />
<br />
सरसों के लहलहाते खेत। गुज़रते जा रहे है। ट्रेन सिटी देते हुए चलती जा रही है। ऐसा लग रहा है कि पीछे कुछ छुट गया है। कई यात्री बातों में मशगुल है। बैठने को लेकर बहसबाजी जारी है। एक छोटा बच्चा भीड़ को देखकर रोये जा रहा है। उसकी माँ चुप कराने की कोशिश कर रही है। दिल्ली में हो रहे विधानसभा चुनाव पर बहस जारी है। कुछ विद्यार्थी लोग उपरी सीट पर कब्ज़ा जमा लिए है। वे मोबाइल में लाफ्टर चैनल देख कर मज़े ले रहे है। भीड़ में झाल-मुढ़ी बनाने वाला भी घुस आया है। कई लोग उसे कोस रहे है तो कई झाल -मुढ़ी बनवा कर खा रहे है।<br />
<br />
सर्दी काफी है। इसलिए भीड़ सहनीय है अन्यथा गर्मी में तो हालत खराब हो जाती। मोकामा के पहले कुछ लोग चैन पुल्लिंग कर ट्रेन को रोक दिए है। कुछ यात्री उन्हें निक्कमा और चोर उच्चका बता रहे है। एक सज्जन उन्हें जेल में डाल कर 10 साल की सजा देने की बात कर रहे है। महोदय के अनुसार जबतक कड़े कानून नहीं होंगे तबतक देश नहीं सुधरेगा।<br />
गाँवों में कुकुरमुते की तरह प्राइवेट स्कूल खुल रहे है। लोग पागल हो गए है.. क्योंकि वे अपने बच्चों को ऐसे स्कूल में भेज रहे है। हमारे जमाने में सरकारी स्चूलों का क्या क्रेज था ! इस विचार को एक बुजुर्ग द्वारा प्रकट किया गया। दुसरे ने कहाँ भाई साहब लोग पागल नहीं समझदार है। सरकार ने शिक्षा व्यवस्था को तबाह कर दिया है। आप बताईये लोगो के पास कोई विकल्प है क्या ?<br />
बिहार के लोगों के व्यवहार पर भी चर्चा जारी है। ये कहीं जाते है वहीँ थुक देते है। मैनर नाम की चीज नहीं है। नियम कायदा नहीं मानना इनका जन्मसिद्ध अधिकार है। एक ने इस बात का प्रतिवाद किया और कहा आप कुछ हद तक गलत है। ये मेहनती होते है। हर परीक्षा में इनका डंका बजता है।<br />
लखीसराय स्टेशन पर कुछ ग्रामीण बोरा,टोकड़ी,झोला आदि लेकर ट्रेन में चढ़ गए है। इससे एक सोकाल्ड बुद्धिजीवी को बहुत परेशानी हुई। उनके अनुसार हिन्दुस्तान की आबादी बढ़ गयी है और सरकार सोयी हुई है। अब नहीं जागी तो खूब मार काट मचने वाली है। चीन को देखिये। कैसे उसने आबादी पर नियंत्रण कर लिया। ...और हमारे देश में तथाकथित लोकतंत्र में कुछ भी संभव नहीं।<br />
<br />
लगातार बहस जारी है। मै उठा और ट्रेन रुकने पर अपने स्टेशन पर उतर गया। हाँ दिमाग में कुछ हलचल जरूर है।<br />
#गपशप<br />
</div>
mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-1678279730982042232019-08-15T10:30:00.002-07:002019-08-15T10:30:46.597-07:00ख़ुशी की हकीकत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
ख़ुशी की हकीकत को<br />
यहां मरते देखा है<br />
तथाकथित व्यवस्था को<br />
कराहते देखा है<br />
प्रकृति को रौंद कर<br />
ईश्वर का<br />
गुणगान करते देखा है<br />
रहनुमाओं द्वारा<br />
निरीह मनई की लाशों पर<br />
वृतचित्र को<br />
रिलीज होते देखा है<br />
संवेदनहीनता की पराकाष्ठा<br />
मानवता की नीचता<br />
तंत्र की असहिष्णुता<br />
और तथाकथित भगवानों की<br />
नपुंसकता को देखा है<br />
ख़ुशी की हकीकत को<br />
यहाँ मरते देखा है<br />
</div>
mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-50249412047330402402019-05-15T11:31:00.001-07:002019-05-15T11:31:33.336-07:00Baatein ye Kabhi na Tu Bhulna || Khamoshiyaan ||Arijit Singh || Cover by...<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="344" src="https://www.youtube.com/embed/3bYOqkCnKpw" width="459"></iframe>mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-52415417002033991892019-03-29T12:15:00.001-07:002019-03-29T12:15:39.151-07:00Mere Naina Sawan Bhado || Tribute to Great Kishore Da || #KishoreDa #Old...<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="344" src="https://www.youtube.com/embed/-OfhmmBrMRo" width="459"></iframe>mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-56192941857379997392019-03-29T11:46:00.001-07:002019-03-29T11:46:35.806-07:00Mera Jiwan Kora Kagaz Kora hi rah gaya || मेरा जीवन कोरा कागज़ || #Kisho...<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="344" src="https://www.youtube.com/embed/_QvtbI_Fo10" width="459"></iframe>mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-51281976776036714932019-03-23T10:48:00.001-07:002019-03-23T10:48:43.200-07:00आज क्या नया सिखा ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
आज क्या नया सिखा ?<br />
================<br />
@ मन करे या न करे, जरूरी कार्य की शुरुआत कर देनी चाहिए, समय के साथ कार्य में मन लगने लगता है। सुबह टहलने नहीं जाने और दिन में ज्यादा आराम करने के कारण शरीर और मन दोनों भारी लग रहा था। बिल्कुल चलने का मन नहीं था। फिर भी हिम्मत बांध कर धीरे-धीरे ही सही टहलने का निर्णय लिया। चप्पल ही पहन कर निकल गया। दिल कह रहा था लौट चल.. पर मै नहीं माना । करीब 10 मिनट बाद कुछ मज़ा आने लगा। फिर श्यामा अपार्टमेंट होते हुए जगदेव पथ की ओर निकल गया। धीरे-धीरे मन काफी प्रसन्न हो गया और शरीर में फुर्ती का अनुभव होने लगा।<br />
@ फणीश्वारनाथ रेणु का उपन्यास "कितने चौराहे" पढ़ते हुए मुझे प्रियोदा का पात्र अच्छा लग रहा है । क्या आज हम उस तरह नहीं सोच सकते ? वैसी सादगी आज भी होनी चाहिए और स्वदेशी की अवधारणा आज भी प्रासंगिक है। इस पात्र से मुझे सादगी के साथ- साथ बचत की और प्रेरणा मिली जिसे मैंने सेफ्टी रेजर खरीदते समय अप्लाई किया।<br />
@ बच्चों को जोश दिलाने पर वे अपना काम जल्दी कर लेते है। मेरा बेटा अनुराग अपना होम वर्क करते हुए बहुत टाल मटोल करता है। आज मैंने उसे जोश दिलाया। मैंने कहा अपना बायाँ हाथ निकालो। जब उसने ऐसा किया तो मैंने कहाँ यह तो तुम्हारे लिए बाएं हाथ का खेल है अर्थात तुम इसे मिनटों में कर सकते हो। उसका मन जोश से भर गया और वह पूर्व के आधे से भी कम समय में होम वर्क कर लिया। अब उसकी आँखे विजयी मुद्रा में चमक रही थी। कभी-कभी मै उसका जोश बढाने के लिए उसके कंधे या पीठ पर थपकी दे देता था।<br />
</div>
mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-58220458876462542522019-03-03T08:49:00.001-08:002019-03-03T08:49:36.128-08:00बेहया<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
देखो, वह कितनी बेहया है। उसके कपड़े देखो। कितनी निर्लज्जता के साथ पहना है। सारे मेलें का माहौल खराब कर रही है। एक अधेड़ उम्र की औरत ने अपनी पड़ोसिन से कहा।<br />
वे दोनों औरते जिस लड़की के बारे में बात कर रही थी वह उन्ही के गाँव के सरपंच की पोती अनन्या थी। वह शहर में पली बढ़ी एक आधुनिक और उन्मुक्त ख़याल की लड़की थी। उसने हाफ जींस और कमीज़ पहन रखा था जिसे देखकर गाँव की कुछ औरते मुंह बिचका रही थी और मर्द जात घूर रहे थे।<br />
ग्रामीण मेला का माहौल था। सभी कुछ न कुछ सामन खरीद रहे थे। जिस महिला ने अनन्या के बारे में बेहया कहा था उसने करीब पांच सौ रुपये का सामान ख़रीदा था। अब वह और उसकी पड़ोसिन दोनों ने घर की ओर प्रस्थान किया। रास्ते में उसका एक छोटा बटुआ जिसमे कुछ पैसे और अन्य सामान थे, गलती से गिर गए। घर पहुँचने पर जब उसे यह आभास हुआ कि छोटका बटुआ नहीं है। वह छाती पीट-पीट कर विलाप करने लगी। तभी अनन्या आती हुई दिखाई दी। उसके हाथ में वहीं बटुआ था। अनन्या ने बटुआ उस औरत को दे दिया। उसमे सभी चीज सही सलामत था। अनन्या ने बताया कि बटुआ में आपके 'आधार' का एक फोटोकॉपी था । उसीसे पता चल पाया कि यह आपका है। इतना कह कर अनन्या चली गयी।<br />
वह उसका धन्यवाद भी नहीं कर पायी। उसकी बेहया वाली सोच पर प्रश्नवाचक चिह्न लग गया था।<br />
अन्दर से 'बेहया' के लिए केवल दुआ ही निकल रहा था।<br />
<br />
</div>
mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-76895883665184332562019-01-20T03:40:00.001-08:002019-01-20T03:40:05.965-08:00जिंदगी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
जिंदगी<br />
------------<br />
एक आशा लिए<br />
कर्तव्य पथ पर<br />
भागता एक पथिक<br />
थक कर सोता नहीं<br />
क्योंकि<br />
वह जिन्दा है।<br />
हर दिन<br />
सुबह की किरण<br />
हमें जागृत करती है<br />
लगातार<br />
अनंत काल से<br />
वह भी थकी नहीं<br />
क्योंकि<br />
वह ज़िंदा है।<br />
मुस्कराहट<br />
जीवन की दौड़ में<br />
पथरीली राह में<br />
अँधेरी रात में<br />
रौशनी देती है<br />
क्योंकि<br />
वह जिन्दा है।<br />
</div>
mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-79483306352461620482018-12-19T21:03:00.001-08:002018-12-19T21:03:26.465-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
वो सुबह सबेरे का अंदाज , गायों का रम्भाना ,<br />
भागते हुए नहर पर जाना और पूरब में लालिमा छाना ,<br />
सबकुछ याद है ।<br />
बैलों की खनकती हुई घंटियाँ , दूर - दूर तक फैली हरियाली ,<br />
वो पीपल का पेड़ और छुपकर जामुन पर चढ़ जाना ,<br />
सबकुछ याद है ।<br />
</div>
mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-73014390982868673332018-06-02T00:31:00.001-07:002018-06-02T00:31:56.114-07:00एक अनजान आदमी नदी की धारा के साथ बहता हुआ कल्पनातीत ख्यालों में डूबा लहरों से बातें करता हुआ थपेड़ों को चीरता चला जा रहा है ! अचानक कुछ सकुचाता हुआ लहरों को छू लिया अब व्यग्र हो सोच रहा कहीं लहरें मैली तो नहीं हो गयी उसके स्पर्श से !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /></div>
mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-22355209902010135902017-11-03T11:06:00.001-07:002017-11-03T11:11:20.840-07:00आज की अति उत्साही मिडिया के जमाने में खुलकर बोलने या करने में भी लोग घबराने लगे है।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /></div>
mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-23917841250538388692017-11-03T11:05:00.001-07:002017-11-03T11:05:20.267-07:00अब सरकार को "पदाधिकारी" शब्द को हटा कर उसके स्थान पर "प्रबंधक" कर देना चाहिए।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /></div>
mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-36806884427419732222017-11-03T11:04:00.001-07:002017-11-03T11:04:04.293-07:00ज़िन्दगी का एक उद्देश्य आशावादी होना भी है। आशावाद ज़िन्दगी में उमंग पैदा करता है।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /></div>
mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-28303123299781898052017-09-30T08:43:00.001-07:002017-09-30T08:43:02.054-07:00अनुभव<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
पूर्व के अनुभव से एक बात कह सकता हूँ की विकट परिस्थितियों के लिए कुछ पैसे जरूर रहना चाहिए... अन्यथा ऐसी लाचारी का भाव उत्पन्न होता है जिसे बयान नहीं किया जा सकता।</div>
mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-80369416471874995392017-09-04T06:07:00.005-07:002017-09-04T06:07:46.721-07:00एक ज्वलंत प्रश्न! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
एक ज्वलंत प्रश्न !<br />
दुष्कर्म और कुकर्म के खिलाफ<br />
सामूहिक आवाज कब उठेगी ?<br />
कृत्रिम मिथक अब टूट जाने चाहिए<br />
आखिर कबतक सताते रहेंगें !<br />
<br />
क्या शारीरिक सौन्दर्य ही<br />
उसकी सबसे बड़ी पूंजी है ?<br />
क्या वह सिर्फ और सिर्फ<br />
वस्तु बनके रह गयी<br />
का हे की आधुनिकता !<br />
<br />
शक्तिरूपा का केवल गुणगान<br />
अब नहीं करना<br />
व्यवहार में हस्ती का निर्माण<br />
कब होगा ?<br />
समाज के सामने एक ज्वलंत प्रश्न !<br />
</div>
mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-47986544659423494132017-07-09T06:56:00.003-07:002017-07-09T06:56:35.532-07:00New Innings <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /></div>
mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-74034508584771491862016-10-01T03:18:00.002-07:002016-10-01T03:18:40.772-07:00आदत है...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px;">आदत है</span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px;">भँवरें के पीछे जाना</span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px;">रोज दुपहरी में </span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px;">एकटक निहारना</span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px;">मौसम बदला क्या !</span></div>
mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-89168526098731596122016-02-19T09:35:00.000-08:002016-02-19T09:35:29.912-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सपनों की पूर्णता<br />
अभिलाषा की पहचान है<br />
व्यथा की आहट<br />
संघर्ष का परिणाम है </div>
mark raihttp://www.blogger.com/profile/11466538793942348029noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5096085452183375321.post-59100316347681235062015-01-13T19:04:00.001-08:002015-01-13T19:04:34.920-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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