Tuesday, April 12, 2011

मन तो खाली है ....

उस उजाले का क्या काम जो सारे शहर में दिख रहा । मन तो खाली है । पहले उसे भरना है । वहां अन्धेरें ने घोंसला बना लिया है ।

Friday, April 8, 2011

आईये हम सब मिलकर उन्हें श्रधांजलि देते है ....

आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री ने 16 वर्ष की उम्र में ही अपनी पहली पुस्तक 'काकली' लिखी थी.
वर्ष 1916 में गया के मैरवा में जन्मे शास्त्री ने मुजफ्फरपुर को अपनी कर्मस्थली बनाया.
उनका आवास निराला निकेतन हिन्दी प्रेमियों का तीर्थ बना रहता था. 
आचार्य की मुख्य रचनाओं में रूप-अरूप, तीर-तरंग, शिप्रा, मेघ गीत, अवंतिका, धूप दुपहर की के अलावा दो तिनकों का घोंसला और एक किरण : सौ झाइयां काफी प्रसिद्ध रही। उन्होंने अपनी आत्मकथा भी लिखा .
हम इस महान आत्मा के जाने बड़े व्याकुल और बेचैन है . आईये हम सब मिलकर उन्हें श्रधांजलि देते है .

Wednesday, April 6, 2011

ऐ मेरे वतन के लोगों....

ऐ मेरे वतन के लोगों
तुम खूब लगा लो नारा
ये शुभ दिन है हम सब का
लहरा लो तिरंगा प्यारा
पर मत भूलो सीमा पर
वीरों ने है प्राण गँवाए
कुछ याद उन्हें भी कर लो -२
जो लौट के घर न आये -२


ऐ मेरे वतन के लोगों 
ज़रा आँख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी
 
जब घायल हुआ हिमालय
खतरे में पड़ी आज़ादी
जब तक थी साँस लड़े वो
फिर अपनी लाश बिछा दी
संगीन पे धर कर माथा 

सो गये अमर बलिदानी
जो शहीद हुए है उनकी 
जरा याद करो कुर्बानी 
जब देश में थी दीवाली
वो खेल रहे थे होली
जब हम बैठे थे घरों में
वो झेल रहे थे गोली
थे धन्य जवान वो आपने
थी धन्य वो उनकी जवानी
जो शहीद..

कोई सिख कोई जाट मराठा
कोई गुरखा कोई मदरासी
सरहद पर मरनेवाला 
हर वीर था भारतवासी
जो खून गिरा पवर्अत पर
वो खून था हिंदुस्तानी
जो शहीद...

थी खून से लथ-पथ काया
फिर भी बन्दूक उठाके
दस-दस को एक ने मारा
फिर गिर गये होश गँवा के

जब अन्त-समय आया तो
कह गये के अब मरते हैं
खुश रहना देश के प्यारों
अब हम तो सफ़र करते हैं
क्या लोग थे वो दीवाने
क्या लोग थे वो अभिमानी
जो शहीद हुए ...
 
तुम भूल न जाओ उनको
इस लिये कही ये कहानी
जो शहीद हुए ...