अंत की शुरुआत तो हमारी सोच के विकृत होने से ही हो जाती है। अंत बाद में दिखाई देता है।सोच का विकृत होना ही मृत्यु है। शरीर भले ही बाद में जलाया जाता है। अंत का दृश्य दिखाई नहीं देता,इसका मतलब यह नहीं कि वह अंत नही है। यह मिथक टूट भी सकता है या फिर इसी मिथक के साथ इस दुनिया से जाने का समय भी हो जाता है।
आशा के पर लग गए और तुम अभी उड़े नहीं क़यामत का इन्तजार कर रहे क्या ? प्यारी चीज थी तो क्या हुआ .. अब तो रहा नहीं , उस प्यार का लोभ... अब तो छोड़ दो !
Saturday, September 3, 2022
प्रार्थना।
छह साल का भोला एक गड्ढे में मछली पकड़ रहा था।भोला के हाथों से बार-बार गरई फिसल जा रही थी। वह परेशान होकर कहा:
' हे गरई महाराज अगर तुम मेरे पकड़ में आ जाओगी तो मैं भगवान जी को दो लड्डू चढ़ाऊंगा।'
इसके बाद वह एकाग्र हो पुनः गरई के सामने आने की प्रतीक्षा करने लगा।
चुपचाप ठुसो।
बनारसी खाट पर बैठे चिल्ला रहा था। कलपतिया ने उसे खाना देते हुए कहा:
'बकवास मत करो। चुपचाप ठुसो। मुझे अभी दो और घरों में बर्तन मांजने जाना है। तबतक बच्चे भी ईस्कूल से आ जायेगें।'
इतना कहकर वह भनभनाते हुए बाहर निकल गई।
Subscribe to:
Posts (Atom)