Sunday, July 28, 2013

तेज़ाब को गुड बाय कहना ही होगा

आजकल की घटनाएं परेशान करती है …. लगातार कई लड़कियों पर तेज़ाब फेंक पर उनके जीवन को नर्क बनाया जा रहा है …. ऐसे लोग हमारे समाज को कलंकित कर रहे है … सरकार ने तेज़ाब की खुली बिक्री पर रोक लगाने का फैसला लिया है …यह कदम स्वागत योग्य है लेकिन सिर्फ इतने भर से तेज़ाब फेंकने की घटना पर अंकुश नहीं लगने वाला … जो भी व्यक्ति ऐसा करता है उसके खिलाफ ऐसी करवाई होनी चाहिए जिससे की वह दुबारा हिम्मत न कर सके. साथ ही तेज़ाब के विकल्प पर ध्यान देना चाहिए . जिन लड़कियों पर तेज़ाब फेंका जाता है , उनका जीवन नारकीय हो जाता है…वे सामान्य जीवन नहीं जी पाती . समाज और सरकार को उनके प्रति उदारता दिखानी होगी .
बाथरूम साफ करने के लिए तो टॉयलेट क्लीनर के नाम पर तेज़ाब 20-25 रुपए में ही मिल जाता है. दुकानों में हर किसी के लिए तेज़ाब की आसान उपलब्धि बंद हो ताकि उसकी तरह किसी और लड़की को अपनी ज़िंदगी यूँ न गुज़रानी पड़े- बिना आँखों के और पूरी तरह खराब हो चुके चेहरे के साथ.सुप्रीम कोर्ट ने कुछ समय पहले निर्देश भी दिया था कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों की बैठक बुलाई जाए ताकि तेज़ाब की बिक्री को रेगुलेट किया जा सके.
 केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में नियमों का जो मसौदा रखा, उसमें बताया गया है फ़ोटो पहचान पत्र और निवास प्रमाण के बिना तेज़ाब नहीं ख़रीदा जा सकेगा. यही नहीं, तेज़ाब की बिक्री के लिए दुकानदार को भी लाइसेंस लेना होगा.केंद्र सरकार ने अपने प्रस्ताव में यह भी कहा है कि अब
क्लिक करेंतेज़ाब को ज़हर की श्रेणी में रखा जाएगा.

 पॉइजन पजेशंस एंड सेल रूल्स में तेज़ाब को ज़हर की श्रेणी में रखने की बात कही गई है। इसे बेचने के लिए लाइसेंस लेना होगा और बिना फोटो पहचान पत्र लिए यह किसी को बेचा नहीं जाएगा। तेज़ाब खरीदने वाले को अपनी पहचान के अलावा खरीदने की वजह भी बतानी होगी। 18 साल से कम उम्र वालों को तेज़ाब नहीं बेचने का प्रावधान किया गया है। अभी टॉयलेट क्लीनर के नाम पर कोई भी व्यक्ति तेज़ाब खरीद सकता है।
तेज़ाब हमले की शिकार हुई दिल्ली की लक्ष्मी ने 2006 में खुले बाजार में तेज़ाब की बिक्री पर मुकमल पाबंदी लगाने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। जस्टिस आरएम लोढ़ा और जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा कि सरकार अभी सिर्फ गाइडलाइन का ड्राफ्ट  लेकर आई है। जब तक पॉलिसी बनेगी, तब तक देर हो जाएगी।

 वर्ष 2005 में एक युवक का प्रेम-प्रस्ताव देने के कारण दिल्ली की सोलह वर्षीया लक्ष्मी पर तीन युवकों ने तेज़ाब फेंक दिया। जिससे उसकी आंखें, नाक, कान, व गर्दन जल गए। हाथों पर गहरे जख्म हो गए। चेहरा इतना विकृत हो गया कि जब वह अपने घर लौटी तो वहां के सारे शीशे हटा दिए गए थे। उसकी सारी तस्वीरें भी हटा दी गई थी।

महिलाओं पर तेजाबी हमले के ऐसे कई उदाहरण हैं। हालांकि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो से ऐसे मामलों का स्पष्ट आंकड़ा नहीं मिल पाता क्योंकि ये मामले धारा 307 (हत्या का प्रयास), धारा 320 (गम्भीर चोट पहुंचाना) और धारा 326 (घातक हथियारों से जान-बूझकर प्रहार करके चोट पहुंचाने) के तहत दर्ज किए जाते हैं। तथापि कैम्पेन एण्ड स्ट्रगल अगेंस्ट एसिड अटैक्स ऑन विमेन' की एक रपट के अनुसार, सिर्फ कर्नाटक राज्य में ही 1999 से 2007 अर्थात, 9 वर्षों में ऐसे 56 मामले दर्ज किए गए। अनुमान है कि भारत में प्रति वर्ष तेजाबी हमले की 1000 घटनाएं घटती हैं पर रपट 100-150 की ही दर्ज हो पाती है। 18 से 40 वर्ष आयु वर्ग की 80 प्रतिशत महिलाएं विवाह और प्रेम प्रस्ताव को नकारने के कारण ऐसे हमले का शिकार होती हैं।

एसिड अटैक न सिर्फ किसी महिला के चेहरे को खराब कर देता है या उसकी आँखों की रोशनी छीन लेता है लेकिन उसे समाज में दोयम दर्जे का नागरिक बना देता है.जिस्म पर लगे घाव तो सबको दिखते हैं लेकिन ज़हन पर लगे घाव किसी को नज़र नहीं आते. आत्मनिर्भर और ज़िंदादिली से भरपूर एक औरत देखते ही देखते असहाय, दूसरों पर आश्रित महिला बन जाती है.  तेजाब के भयंकर दुष्प्रभावों को देखते हुए भी इसे हथियारों की तरह घातक माना ही नहीं गया है। जबकि दुकानों में दस-बीस रुपयों में खुले आम मिल जाने वाला तेजाब हथियार से भी अधिक घातक है। तेजाबी हमले से पीड़ित को आरंभिक दो-तीन बड़े ऑपरेशानों के बाद भी कई बाद 25-30 ऑपरेशन कराने पड़ सकते हैं, जिसका खर्च हर बार तीन लाख रुपये तक आता है। फिर भी, संक्रमण का ख़तरा सदैव बना रहता है क्योंकि हाइड्रोक्लोरिक एसिड, सल्फ्यूरिक एसिड और नाइट्रिक एसिड मनुष्य की त्वचा के साथ हड्डियों को भी गला देती है.

 वर्ष 2007 में नोएडा के एक सत्रह वर्षीय किशोरी पर पड़ोसी ने तेजाब से प्रहार किया। मैसूर में एक 22 वर्षीया गृहिणी को उसके पति ने सल्फ्यूरिक एसिड मिश्रित शराब पीने के लिए मजबूर किया और दिल्ली की एक फैशन डिज़ाइनर को ऐसे प्रहार का सामना करना पड़ा। उक्त तीनों महिलाएं जीवन की भयावहता से जूझने के लिए विवश कर दी गई। तब उच्चतम न्यायालय ने महिलाओं पर तेज़ाब प्रहार को हत्या से बदतर बताते हुए उनसे निपटने के लिए कठोर कानून की मांग की थी।

  भारत में भी पिछले एक दशक में तेज़ाब हमलों में वृद्धि हुई है. स्वयंसेवी संस्था एसिड सरवाइवल ट्रस्ट इंटरनेशनल के मुताबिक भारत में हर साल एसिड अटैक के करीब 500 मामले होते हैं.कागज़ पर नीति तय होने, उसके कानून बनने और इसे कड़ाई से लागू होने के बीच लंबा समय लग जाता है. आज़ादी के बाद 60 सालों में इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार ही नहीं हुआ.

एसिड सर्वाइवर्स ट्रस्ट इंटरनेशनल के अनुसार दुनिया के करीब 23 देशों में हाल के वर्षों में एसिड हमलों की घटनाएँ हुईं. इनमें अमरीका, ब्रिटेन, अमरीका, ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों के भी नाम हैं. लेकिन ये इन देशों में दूसरी जगहों की अपेक्षा हमलों की संख्या बेहद कम है. महिलाओं पर एसिड हमलों की सबसे अधिक घटनाएँ भारत, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश के अलावा कंबोडिया में दर्ज की गई हैं.ईरान में 2004 में शादी के लिए मना करने पर 24 साल की अमेना पर एक लड़के ने तेज़ाब फेंक दिया था जबकि कंबोडिया में 23 की विवियाना पर एसिड अटैक में उनका चेहरा, हाथ और छाती जल गई थी.

 तेज़ाब हमले के मामले में भारत दुनिया का चौथा सबसे खतरनाक देश है। वर्ष 1967 में बांग्लादेश में, 1982 में भारत में और 1993 में कम्बोडिया में तेज़ाब हमले की पहली घटनाएं घटी। यह सिलसिला कमोबेश निरन्तर जारी है। सरकार ने महिला हिंसा उन्मूलन हेतु प्रतिबध्दता तो दर्शायी, कानून भी बनाये लेकिन यह एक पहलू छूट गया। बाद में भी इस पर ध्यान  नहीं दिया गया। जबकि तेजाब के प्रहार से पीड़ित महिलाओं का पुनर्वास भी आसान नहीं है क्योंकि प्लास्टिक सर्जरी, त्वचा प्रत्यारोपण या पुन: त्वचा उगाना न केवल बहुत महंगा है बल्कि इसमें सफलता की संभावनाएं भी क्षीण हैं।

तेजाब की खुली बिक्री रोकने को लेकर सात साल से चल रहे केस में सुप्रीम कोर्ट ने 18 जुलाई 2013 को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। अदालत ने तेजाब की खुली बिक्री पर प्रतिबंध और पीडि़त को तत्काल आर्थिक सहायता देने के आदेश दिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में तेज़ाब बेचने और खरीदने से जुड़े सभी नियम-कायदे गुरुवार से ही लागू कर दिए। अदालत ने कहा कि यदि बिना पहचान-पत्र देखे तेज़ाब बिका तो पॉइज़न एक्ट 1919 के तहत केस चलेगा। सजा होगी। अब खुले बाजार में वही तेज़ाब बेचा जाएगा, जो त्वचा पर बेअसर हो। जस्टिस आरएम लोढ़ा और जस्टिस फकीर मोहम्‍मद की बेंच ने राज्य सरकारों को आदेश दिया कि वे तेज़ाब हमों को गैर-जमानती अपराध बनाएं। कोर्ट ने सरकारों को तीन महीने के भीतर इस बारे में पॉलिसी लाने के निर्देश दिए।

तेजाब का असर-

हाइड्रोक्लोरिक एसिड, सल्फ्यूरिक एसिड, नाइट्रिक एसिड इंसान की त्वचा के साथ हड्डियां तक गला देती हैं। यानी पीडि़त के लिए दर्दनाक और देखने वालों के लिए असहनीय।

ज्यादातर मामलों में पीडि़त की आंख हमेशा के लिए खराब हो जाती है। इसके अलावा सांस के जरिए तेज़ाब फेफड़ों तक पहुंच गया, तो यह जानलेवा हो जाता है। जैसा, कि दो माह पूर्व मुंबई में प्रीति राठी के मामले में हुआ।

2-3 शुरुआती बड़ी सर्जरी के बाद कई सेकंडरी सर्जरी करनी पड़ती है। कई बार 30-30 सर्जरी भी। हर सर्जरी का खर्च 1-3 लाख रुपए।

लेकिन 3-4 साल भी इन्फेक्शन का खतरा है। झुलसी हुई त्वचा बाकी शरीर में इन्फेक्शन फैलाती है। जले हुए हिस्से पर त्वचा बनने से गठान उभर आती है।

कई बार घावों पर नारियल तेल लगा दिया गया। कंबंल लपेट दिया गया। जिसने उनके ठीक होने की संभावना पूरी तरह खत्म कर दी।

बर्न के आसपास डेड टिशू में इंफेक्शन फैलता है और यही घाव भरने नहीं देता। इंफेक्शन हादसे के महीनों बाद भी हो सकता है।
 तेज़ाब कोई हथियार तो नहीं पर किसी की ज़िंदगी हमेशा के लिए बर्बाद करने या किसी की जान लेने के लिए काफी होता है.

चिकित्सा क्षेत्र में तमाम प्रगति के बावजूद तेज़ाब से प्रभावित चेहरे को फिर से उसके मौलिक स्वरुप में नहीं लाया जा सकता . मेरा तो यह मानना है की ऐसी घटनाएं हमारे समाज को विकृत कर रही है और महिलाओं में खौफ पैदा कर रही है . भारत को हमेशा यह गर्व रहा है की भारतीय संस्कृति  ने महिलाओं को देवी का दर्जा दिया है और महिलाओं का स्थान काफी उंचा माना जाता रहा है …. जब ऐसी घटनाएं होती है तो संस्कृति के पहरेदारों को सामने आना चाहिए और इसका पुरजोर तरीके विरोध करना चाहिए …बल्कि पुरे समाज को इसके खिलाफ खड़ा होना चाहिए . 

2 comments:

  1. तेज़ाब के विकल्प और फेकने वाले को कठोर सजा जैसी बातों पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है, वर्ना ये असामाजिक तत्वों के हाथ पड़कर अनर्थ करता ही रहेगा...ज्वलंत समस्या पर प्रहार करता सशक्त आलेख

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