Sunday, July 21, 2013

हम अपने अस्तित्व के लिए ही संकट खड़ा कर रहे हैं...

वाराणसी जिन दो नदियों वरुणा और असी से मिलकर बना था, उसमें एक नदी असी विलुप्त हो चुकी है ....


तराई की छोटी नदियां चीनी मिलों और उद्योगों के जहरीले कचरे का नाला बन गई हैं।


गोरखपुर की आमी नदी कभी अमृत जैसा पानी लोगों को देती थी, लेकिन अभी इसका पानी जहरीला हो चुका है...


हम अपने अस्तित्व के लिए ही संकट खड़ा कर रहे हैं...


आजादी के 66 साल बाद भी कश्मीरी अवाम का बाकी देश से वैसा संबंध कायम नहीं हो पाया है जो एक देश के नागरिकों में होता है।

114 साल पहले कश्मीर के पूर्व शासक महाराजा प्रताप सिंह ने वहां रेल चलाने की सोची थी।


विवाह 'लिव-इन' में रहने वाली स्त्री की भी पैतृक संपत्ति में कोई दावेदारी नहीं मानी जाती।

आधुनिक जीवन के साथ पुरुष समाज में नई चीजों के साथ समझौता करने की प्रवृत्ति पैदा हुई है।


पारंपरिक ईरानी मानते हैं कि कुत्ते नाजी होते हैं, उन्हें पालना ठीक नहीं है..


जब तक चिड़ियों के लिए संवेदना नहीं होगी तब तक उन्हें बचाने का कोई भी अभियान सफल नहीं होगा।

शहरों में जिस तरह से ऊंची इमारतें बन रही हैं वह गौरैयों के लिए घातक है।

कीटनाशकों के छिड़काव ने भी कई पक्षियों के लिए समस्याएं पैदा की हैं।

हम अपने अस्तित्व के लिए ही संकट खड़ा कर रहे हैं...

4 comments:

  1. Aapne likhe hue saare mudde sahee hain!

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  2. कल 28/07/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  3. आपने बिल्कुल ठीक कहा "हम अपने अस्तित्व के लिए ही संकट खड़ा कर रहे हैं..."। आभार।।

    नये लेख : प्रसिद्ध पक्षी वैज्ञानिक : डॉ . सलीम अली

    जन्म दिवस : मुकेश

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