Saturday, March 10, 2012

यदि तोर डाक शुने केऊ न आसे तबे एकला चलो रे।...

‘यदि तोर डाक शुने केऊ न आसे तबे एकला चलो रे।’.................
ये गाना ही नहीं बल्कि जीवन दर्शन है .कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर, एक व्यक्ति का नहीं एक युग और एक संस्था का नाम है .
गाँधी जी इसी दर्शन के सहारे नोवाखली में साम्प्रदायिकता के खिलाफ अकेले खड़े हो गए थे .
इस जीवन दर्शन से प्रेरणा प्राप्त होती है .एकला चलो रे ...कामयाबी और मानसिक संतुष्टि का दूसरा नाम है .

यदि तोर डाक शुने केऊ न आसे
तबे एकला चलो रे।

एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो रे!
यदि केऊ कथा ना कोय, ओरे, ओरे, ओ अभागा,
यदि सबाई थाके मुख फिराय, सबाई करे भय-
तबे परान खुले
ओ, तुई मुख फूटे तोर मनेर कथा एकला बोलो रे!

यदि सबाई फिरे जाय, ओरे, ओरे, ओ अभागा,
यदि गहन पथे जाबार काले केऊ फिरे न जाय-
तबे पथेर काँटा
ओ, तुई रक्तमाला चरन तले एकला दलो रे!

यदि आलो ना घरे, ओरे, ओरे, ओ अभागा-
यदि झड़ बादले आधार राते दुयार देय धरे-
तबे वज्रानले
आपुन बुकेर पांजर जालियेनिये एकला चलो रे!

6 comments:

  1. बहुत सुंदर गीत .... इसे सुनकर हिम्मत मिलती है....

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  2. प्रेरक आह्वान!
    सुन्दर पोस्ट!

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  3. यदि तोर डाक शुने केऊ न आसे तबे एकला चलो रे।’.

    महान कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर की ये पंक्तियां वास्तव में जीवन-दर्शन है।

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  4. अनुपम ... महान कवी का दिया जीवन दर्शन ...
    बहुत ही प्रेरक पोस्ट ...

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  5. Bahut sundar rachana se ru-b-ru karaya!

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  6. अद्भुत....
    नमन महान कवि को.

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