Sunday, June 14, 2009

मंजिल

चलता जा ऐ मुसाफिर ,कहीं दूर कोई पुकारा ।

गाता जा ऐ मुसाफिर ,कहीं दूर तेरा सहारा ।

रुकना नही तू ,टूटना नही तू ,आगे बढ़ते जाना ।

मंजिल मिलेगी ,इक दिन वादा रहा ,ये वादा .....

5 comments:

  1. एक सकारात्मक कविता .......सुन्दर

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  2. मुसाफिर का काम तो चलना होना ही चाहिए.......... सुन्दर लिखा है... आशा का संचार करता हुवा

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  3. Kaun se waade??Haan, sakaratmak soch zaroor hai...haqeeqat me koyi wade karte hain, unhen kabhi poorebhi karte hain, to kuchh dost wade kartehee nahee, lekin bin kahe saath khade ho jate hain...aise dost mil jana khush qismatee hotee hai !

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  4. बहुत खूबसूरत कता कहा है आपने। बधाई।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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