Sunday, July 3, 2011

....और भटक गया !

....अपने को ही पहचान न सका
....और भटक गया
मेरी ज़िन्दगी में कुछ भी खुबसूरत नही
..जो कुछ था उसे भी बहता पाया
....अपने को ही पहचान न सका

दर्द के वीराने में .....
भटकता ही रह गया
कुछ ढूढता ही रह गया
....और एक कंकड़ भी न पा सका

4 comments:

  1. मार्मिक भावों की सहज अभिव्यक्ति ...........अच्छी रचना

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  2. हर शब्‍द बहुत कुछ कहता हुआ, अभिव्‍यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।

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  3.  अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

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