अपनी मिटटी के लिए तड़प
क्या होती है ?
बिछड़ने के बाद जान पाए
उन्हें सलाम, जो वही रहे
हम तो भाई नकली हो गए
उन हवाओं को सलाम
जो उस मिटटी को छू कर आये
इन हवाओं में वह खुशबू कहाँ !
ये तो दूषित और नकली है
उस मिटटी के सीने से ,
लगने का मन कर रहा
अब जाकर जान पाए
tere daaman se jo aaye un hawaon ko salaam ... apni mitti ki mahak hi alag hoti hai
ReplyDeleteमिटटी के लिए तड़प-अच्छी अभिव्यक्ति१
ReplyDeleteअपनी मिटटी के लिए यह तड़प दूर जाने पर ही समझ आती है.... संवेदनशील
ReplyDeleteमिटटी के लिए तड़प-अच्छी अभिव्यक्ति| धन्यवाद्|
ReplyDeleteअपनी मिट्टी के प्रति प्रेम शाश्वत है।
ReplyDeleteकविता बहुत प्रभावशाली है।
देश की मिटटी से सबको प्यार होता है ... इसकी तड़प तो रहती है ...
ReplyDeleteसही कहा आपने...
ReplyDeleteकविता की प्रत्येक पंक्ति में अत्यंत सुंदर भाव हैं.... बहुत-बहुत बधाई !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना.
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई !
देश की मिटटी से सबको प्यार होता है ... इसकी तड़प तो रहती है ... बहुत ही भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteसुन्दर ! कविता में अपनी माटी से प्रेम बहुत बढ़िया प्रस्तुत किया है !
ReplyDeleteयही तो है माटी का प्यार...
ReplyDeleteमिट्टी की सुगंध ऐसी ही होती है |
ReplyDeletesari rachnaye padi bahut sunder likha hai
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