Thursday, February 17, 2011

मिट्टी की सुगंध

अपनी मिटटी के लिए तड़प 
 क्या होती है ?
 बिछड़ने के बाद जान पाए
  उन्हें सलाम, जो वही रहे 
 हम तो भाई नकली हो गए
 उन हवाओं को सलाम 
 जो उस मिटटी को छू कर आये 
  इन हवाओं में वह खुशबू कहाँ !
 ये तो दूषित और नकली है 
 उस मिटटी के सीने से ,
 लगने का मन कर रहा 
 अब जाकर जान पाए 


14 comments:

  1. tere daaman se jo aaye un hawaon ko salaam ... apni mitti ki mahak hi alag hoti hai

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  2. मिटटी के लिए तड़प-अच्छी अभिव्यक्ति१

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  3. अपनी मिटटी के लिए यह तड़प दूर जाने पर ही समझ आती है.... संवेदनशील

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  4. मिटटी के लिए तड़प-अच्छी अभिव्यक्ति| धन्यवाद्|

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  5. अपनी मिट्टी के प्रति प्रेम शाश्वत है।

    कविता बहुत प्रभावशाली है।

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  6. देश की मिटटी से सबको प्यार होता है ... इसकी तड़प तो रहती है ...

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  7. कविता की प्रत्येक पंक्ति में अत्यंत सुंदर भाव हैं.... बहुत-बहुत बधाई !

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  8. बहुत ही सुन्दर रचना.
    बहुत-बहुत बधाई !

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  9. देश की मिटटी से सबको प्यार होता है ... इसकी तड़प तो रहती है ... बहुत ही भावपूर्ण रचना

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  10. सुन्दर ! कविता में अपनी माटी से प्रेम बहुत बढ़िया प्रस्तुत किया है !

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  11. यही तो है माटी का प्यार...

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  12. मिट्टी की सुगंध ऐसी ही होती है |

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  13. sari rachnaye padi bahut sunder likha hai

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