आशा के पर लग गए और तुम अभी उड़े नहीं
क़यामत का इन्तजार कर रहे क्या ?
प्यारी चीज थी तो क्या हुआ ..
अब तो रहा नहीं ,
उस प्यार का लोभ...
अब तो छोड़ दो !
Saturday, December 4, 2010
अपना जहाँ
अपना जहाँ
खो दिया
अब खोज रहा
राहों में भटकता रहा
मंजिल खो दिया
पहले आग लगाया
अब पानी खोज रहा
रोशनी आ कर चली गयी
अब चाँद से सवेरा मांग रहा
अपना जहाँ
खो दिया
अब खोज रहा
बहुत सही मार्क---गहन बात है---मानव ने स्वयं ही अपना परि्वेश-पर्यावरण, प्रक्रिति, सदाचरण को नष्ट किया अब विग्यान, दूसरे ग्रहों, नई नई खोजों, मनोरन्जनॊ, धन, भागदौड में ढूंढ रहा है ...ज़िन्दगी का मन्त्रा...बहुत खूब...बधाई
Jo kho gaya uski talaash me jo h wo bhi mat kho dijiyega...
ReplyDeletebas isi dua k sath-
Monali :)
जो खो जाता है वो फिर कहाँ मिलता है,पर हाँ तलाश जारी रहती है..
ReplyDeleteतभी कहते हैं जो मिले उसे संभाल कर रखना ही जीवन है ...
ReplyDelete.
चाँद के पास भी तो उधार की रौशनी होती है मार्क जी ......!!
ReplyDeleteमार्क जी
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर पहली बार आया हूँ , काफी प्रभावी पंक्तियाँ लिखी हैं आपने ....जीवन सन्दर्भों को उद्घाटित हुई ...शुभकामनायें
kewal ram ji thanks a lot...most welcome
ReplyDeleteतारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.
ReplyDeleteबहुत सही मार्क---गहन बात है---मानव ने स्वयं ही अपना परि्वेश-पर्यावरण, प्रक्रिति, सदाचरण को नष्ट किया अब विग्यान, दूसरे ग्रहों, नई नई खोजों, मनोरन्जनॊ, धन, भागदौड में ढूंढ रहा है ...ज़िन्दगी का मन्त्रा...बहुत खूब...बधाई
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