कहने को तो ..... नीला आसमान मेरे चारो तरफ़ लहरा रहा है । पर मेरे लिए एक मुठ्ठी भर भी नही बचा ।
चाहत तो एक मुठ्ठी भर आसमाँ की ही थी । वह भी मुअस्सर नही ।
सूरज की किरणे मुझ पर भी वैसे ही पड़ती है , जैसे दूसरो पर गिरती है । अफ्शोश !मुझमे गर्मी पैदा करने की
ताकत उसमे नही ।
कौन जानता ...मै वह अन्धकार बन गया हूँ , जिसपर उजाले का कोई असर नही ।
sabko mutthi bhar asman hi to chiye...or wo hi nahi milta.....
ReplyDeletevo to dan samjhkar apni roshni hme de deta hai
ReplyDeleteye to ham par nirbhar hai ki ham use kis rup me swekarte hai.
sundar abhivykti.
Mark ji jhallevichaaraanusaar dene waalaa jab bhee detaa hai chappar fhaad kar hi detaa hai.syaano kaa kathan hai ki andhere ke baad hi ujaalaa aataa hai .aur woh bahut achaa lagtaa hai.so cheer up
ReplyDeleteज़िन्दगी में चाह तो बहुत होती है पर हर चीज़ मिलना मुमकिन नहीं होता है! बहुत खूब लिखा है आपने !
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