वो गंगा । अब नही दिखती । जिसकी आवाज में मधुरता थी । चेहरा देखने के लिए आईने की जरुरत नही थी । जो हमारी प्यास भी बुझाती थी । आज गंदे नाले में बदल गई । उसका कोई दोष नही । वो तो अपने हालत पर रो रही है । उस दिन को याद कर रही है, जब भगीरथ ने धरती पर अवतरित किया । याचना कर रही है ...अब भी छोड़ दो । उसकी आवाज सुनने वाला कोई नही । सच कहूँ ... घोर कलयुग आ गया है ।
सच कहा कि गंगा रॊ रही है लेकिन अपने हालात पर नही बल्कि सम्पूर्ण मानव सभ्यता पर आने वाले प्रदूषण रूपी खतरे के बारे में सॊचकर रॊ रही है आखिर वह मां जॊ ठहरी
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