आशा के पर लग गए और तुम अभी उड़े नहीं
क़यामत का इन्तजार कर रहे क्या ?
प्यारी चीज थी तो क्या हुआ ..
अब तो रहा नहीं ,
उस प्यार का लोभ...
अब तो छोड़ दो !
Friday, April 10, 2009
कंकड़
पानी में कंकड़ डालना अच्छा है । आनंद भी आता है । इन्तजार करने का बहाना भी है । ठीक है ...पर कभी कभी ही । पानी के लिए जगह ही न बचे । इतना मत डालना । ये ठीक नही ।
कंकड़ फेक कर इंतजार का वह बचपना था, अब तो "जूता-फेक" संस्कृति जन्म ले रही है और इसमें कोई इंतजार नहीं, क्रिया, प्रतिक्रिया सब कुछ त्वरित.....................
वाह!!!!बहुत सुन्दर..आज हम सब ऊपर तक कंकड भर देने की कोशिशें ही तो कर रहे हैं.
ReplyDeletebahut sundar ......
ReplyDeleteकंकड़ फेक कर इंतजार का वह बचपना था, अब तो "जूता-फेक" संस्कृति जन्म ले रही है और इसमें कोई इंतजार नहीं, क्रिया, प्रतिक्रिया सब कुछ त्वरित.....................
ReplyDeleteचन्द्र मोहन गुप्त