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Friday, July 13, 2012

आँखों का तर्क

तर्क बातों से ही नहीं बल्कि आँखों से भी होता है . आँखों का  तर्क समझना  मुश्किल है .इस तर्क को किसी परिभाषा में नहीं बंधा जा सकता .यह तर्क शब्दहीन  है पर बातों के तर्क से अधिक प्रभावकारी है .आँखों का तर्क इंसान को सच्चा इंसान बना देता है जबकि बातों का तर्क इंसान को जाहिल  बना देता है .

Sunday, January 23, 2011

बंद होठ कुछ गए ...

बंद होठ कुछ गए
आँखें बातें करती रही
सपने रंगीन हो गए 
ऐसा नशा छाया,कि
शाम में ही सवेरा हो गया
 हवा में उड़ने लगा
  ...और उड़ता ही चला गया

Thursday, June 25, 2009

हे भगवान् अब इन्तजार नही होता ..........

रातों में नही , दिन में ही तारें नजर आ गए ।
ऐसा तो सोचा न था ,अश्क आंखों से बह गए ।
बंद आंखों में तेरा ही चेहरा दीखता है ।
सुनो तो ,ये मेरा मन तुझसे कुछ कहता है ।
ख़्वाबों में न सोचा था ,पर तेरे कदम बहक गए ।
आँख अभी लगी ही थी , तुम चुपके से निकल गए ।

Monday, April 6, 2009

आँखें

आँखें जब बात करती है, तो सब सुनते है । बोलता कोई नही । वहां शब्दों की जरुरत नही । उन आंखों में गजब का आकर्षण होता है । कहानी ख़ुद ब ख़ुद बयां हो जाती है ।