Thursday, December 23, 2010

लमुहा

लमुहा एक स्थान जिससे मुझे काफी लगाव है .मेरे ननिहाल में एक तालाब है जिसे सभी लमुहा के नाम से जानते है .बचपन में यही पर छठ  माता की घाट बनती थी और सभी बच्चे वहां की साफ़ सफाई करते थे .छठ पर्व की रात को हम मिटटी की बनी ढकनी में दिया रख कर लमुहा में तैराते थे फिर उसे  धान की पुआल पर रख कर लमुहा के बीच ले जाने का  प्रयास करते थे . सच बहुत मज़ा आता था.मै एक अच्छा तैराक भी था .कई बार मैंने लामुहा को आर पार भी किया था .सब बच्चे मेरा लोहा मानते थे .अभी कुछ दिन पहले उस स्थान को देख कर वो दिन याद आ गए .लमुहा एक ऐसी जगह है जहाँ से मेरे बचपन की यादें जुडी है.
आज लमुहा अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है ....चारो तरफ गन्दगी ही गन्दगी ...मछलियों का जीना दूभर हो गया है ...और चारो ओर से कब्ज़ा करने वाले कोई मौका नहीं छोड़ रहे ...साफ़ सफाई का भी बुरा हाल है ...उसका आयतन भी छोटा होता जा रहा है...कुछ सालों में वह हमसे विदा ले लेगा और  फिर वहां पर पक्के कंक्रीट के घर नज़र आयेंगे .....बेचारा!... उसे भी लोगों ने नहीं छोड़ा .

Friday, December 10, 2010

दर्द आँखों से छलक ही गया

दर्द आँखों से छलक ही गया
रोकने की बहुत कोशिश की
कहानी लम्बी है        
कैसे बताऊँ !
जुदाई की बरसात में बह गया       

Saturday, December 4, 2010

अपना जहाँ

अपना जहाँ
खो दिया
अब खोज रहा 
राहों में भटकता रहा
मंजिल खो दिया
पहले आग लगाया
अब पानी खोज रहा
रोशनी आ कर चली गयी    
अब चाँद से सवेरा  मांग रहा
अपना जहाँ
खो दिया
अब खोज रहा 

Thursday, December 2, 2010

अँधेरा

सूरज की किरणे मुझ पर भी वैसे ही पड़ती है , जैसे दूसरो पर .. अफ़सोस  !मुझमे गर्मी पैदा करने की
ताकत उसमे नही ।
कौन जानता ...मै वह अन्धकार बन गया हूँ , जिसपर उजाले का कोई असर नही ।

Sunday, November 28, 2010

कारपोरेट घरानों की गोद में बैठकर खेलने में सोने चांदी के सिक्के बरसते है...

आज पत्रकारों की बाढ़ आ गयी है .हर कोई अपनी पत्रकारिता के झंडे गाड़ना चाहता है .केवल ख्यालों में ही .अच्छे पत्रकार बनने के लिए काफी समर्पण की जरुरत होती है और उसके लिए गहन अध्ययन करना होता है .अपने विचारों को बिना किसी दबाव के रखना होता है और किसी भी मुद्दे पर संतुलित होकर अपने विचार रखने पड़ते है .समाज के प्रति जिम्मेदारी निभानी पड़ती है . एक पत्रकार दबाव समूह के अंग के रूप में काम करता है जो जनता की परेशानियों को सरकार के समक्ष जोरदार तरीके से रखता है .

आज तो ये गुण विरले ही मिलते है . सबको पैसा बनाने की जल्दी है . उनके पास तर्क भी है की अगर हम थोड़े भी ढीले हुए तो पीछे छुट जायेंगें और फिर दुबारा मौका नहीं मिलेगा .आखिर आजाद भारत में सबको पैसा बनाने की आजादी हासिल है तो हम क्यों पीछे खड़े रहे ?पैसे लेकर खबर छापना ,किसी ख़ास व्यक्तित्व की तरफदारी करना अधिकाँश पत्रकारों की पहचान बनती जा रही है .जानकारी भले ही न हो सनसनी बनाना तो सबको आता है .कारपोरेट घरानों की गोद में बैठकर खेलने में सोने चांदी के सिक्के बरसते है .सिक्के तो पाकर ये थोड़ी सी सुख सुविधा हासिल जरुर कर लेते है पर अपने पेशें को बेच डालते है .कोई कुछ नहीं कर सकता ,इनकी अपनी जिंदगी है ,जैसे चाहे जिए ...दुःख तो इस बात का है की पत्रकारिता के लोकतांत्रिक पक्ष का क्षरण होता जा रहा है .

Tuesday, November 23, 2010

.बिहार में नितीश सरकार की वापसी बिहार के लोगों की जीत है...

बिहार के चुनाव ने यह साबित कर दिया है की विकास के नाम पर दुबारा सत्ता में वापसी हो सकती है .जाति  और सम्प्रदाय के अलावा भी अन्य मुद्दें है जिन के बल पर चुनाव जीता जा सकता है .सकारात्मक मत का  आज के जमाने में भी  महत्व बचा हुआ है .अगर नितीश कुमार को इस चुनाव में जित हासिल नहीं होती तो फिर विकास की राजनीति काफी पीछे चली जाती .इससे यह भी साबित हो गया है की बिहार के मतदाता अधिक परिपक्व हो चुके है और अब वह मंडल के जमाने से बाहर आना चाहते है .
हालांकि इस बार भी जातिगत समीकरण रहे है लेकिन विकास सबपर भारी पड़ा है .राष्ट्रीय  राजनीति के लिए भी यह एक संकेत का काम कर सकता है , जिससे आनेवाले दिनों में राष्ट्रीय राजनीति में नीतिगत तथा बुनियादी परिवर्तन देखने को मिल सकता है .बिहार के मतदाताओं ने यह साबित कर दिया है की वे अब केवल जाति की राजनीति करने वालों को आगे मौका नहीं देने वाले .बीजेपी के लिए भी एक निर्देश इस चुनाव से मिला है की भविष्य में उसे किस प्रकार की राजनीति करनी चाहिए .अब नितीश सरकार को अगले पांच वर्षों में जनता के भरोशें पर खरा उतरना होगा .अब उनका वास्तविक इम्तेहान होगा जब लोगों की आकांक्षा उनसे अधिक बढ़ गयी है .

Friday, November 19, 2010

भीड़ ...

आज ज़िन्दगी के मायने बदल गए है .हर जगह भीड़ है .शुकून नहीं मिलता .कृत्रिम भीड़ ही ज्यादा दिखाई देती है वास्तविक हो तो कोई बात नहीं .सड़क पर भीड़ ...बाजार में भीड़ ...आकाश में भीड़ ...सागर में भीड़ ...मंदिर मस्जिद में भीड़ ....संसद में भीड़ ...स्कुल कालेज में भीड़ ...अस्पताल में भीड़ ... हर जगह भीड़ ही भीड़ .
भीड़ अच्छी बात हो सकती है पर इसे नियंत्रित किया जाय तो ...प्रशिक्षित किया जाय तो ,पर ऐसा  नहीं है, यह और बेतरतीब ढंग से बढती ही जा रही है .कुछ सियासी लोगों के लिए संजीवनी ही है .भीड़ में गुणवता लाने की कोशिश नहीं हो रही ,इसे बोझ बताने का चलन बढ़ रहा है . सरकार इसे अपनी नाकामी का बहाना बना रही है .
आगे भीड़ और बढ़ेगी ही ..तब बहाना बनाने वालो पर यह भारी साबित होगी . आपाधापी में जो आज कुछ चंद  लोग जो घी पी रहे है ..कल उनके मुंह से यह भीड़ घी छीन कर पी जायेगी ...तब व्यवस्था का दोष देना मुर्खता की बात होगी . आज ही चेत ले इससे सुन्दर कुछ नहीं होगा .

Monday, November 15, 2010

रिश्ते....

रिश्ते नाते सब नाटक है ...इसी बहाने लूटने का मौका मिल जाता है ....ओह !अग्नि के सात फेरे का कोई मोल नही ....
देह को लाल पिला करना ही आधुनिकता हो गई ...सबको हो क्या गया है !अबूझ पहेली .....हद हो गई है ।
....कोई रोकता क्यों नही ,रोकने वाले भी तो मिलावटी हो गए है ।

Sunday, November 7, 2010

यादें ....

यादें ....उफ्फ ये यादें । ज़िन्दगी भर का दर्द ...और गम । कभी दिन के उजालें में तो कभी रात के अन्धेरें में । कभी मेले में तो कभी वीराने में हलचल ...
उफ्फ ये यादें .....मानो जीवन भर साथ निभाने का ठेका ले रखा है ।

Monday, February 1, 2010

सबकुछ याद है....

कुछ मिटटी और कुछ ईंट की वो इमारत ,
वो रास्ते जिनपर कभी दौडा करते थे ,
सबकुछ याद है ।

गंवई गाँव के लोग कितने भले लगते थे ,
सीधा सपाट जीवन , कही मिलावट नही ,
दूर - दूर तक खेत , जिनमे गाय -भैसों को चराना ,
वो गोबर की गंध व भैसों को चारा डालना ,
सबकुछ याद है ।

गाय की दही न सही , मट्ठे से ही काम चलाना ,
मटर की छीमी को गोहरे की आग में पकाना ,
सबकुछ याद है ।

वो सुबह सबेरे का अंदाज , गायों का रम्भाना ,
भागते हुए नहर पर जाना और पूरब में लालिमा छाना ,
सबकुछ याद है ।

बैलों की खनकती हुई घंटियाँ , दूर - दूर तक फैली हरियाली ,
वो पीपल का पेड़ और छुपकर जामुन पर चढ़ जाना ,
सबकुछ याद है ।

Friday, January 15, 2010

अँधेरी रात ...

एक मोमबती ले निकली हूँ । घुप अँधेरी रात है ।
मेरे लिए नही यह कोई नई बात है । सारे जग में कर दूंगी उजाला ।
हिम्मत है तो रोक कर दिखाओं ।

Saturday, January 2, 2010

नव वर्ष.........

सभी मित्रों को नव वर्ष की शुभकामना ,
हम सब नव वर्ष में प्रवेश कर गए ,पर कुछ बदला नहीं वही सारी चीजें जो हमें परेशान करती रही है आगे भी करती रहेगी. इस साल भी ब्लेम गेम होगा और आम लोगों की जरूरतों को नजरअंदाज कर दिया जायेगा .कोई और राठौर रुचिका को प्रताड़ित करेगा और छुट जायेगा .
ऐसे ही बम ब्लास्ट होते रहेंगे और हम आतंकियों की मेहमानवाजी में व्यस्त रहेंगें . ऐसे ही ग्लेसियर पिघलते रहेंगे और एक दिन तुवालु डूब जायेगा .डी डी सी ए में भ्रष्टाचार जारी रहेगा और ऐसे ही पिचें बनती रहेंगी .
चार दिन के आये ओबामा को नोबल प्राइज़ मिलता रहेगा , धरातल पर काम करने की जरुरत ही नहीं
........पर आशा है की कुछ अच्छे काम भी देखने को मिलेंगे ...नेता थोडा बहुत सकारात्मक होंगे और नयी पीढ़ी को मौका देंगे .