आशा के पर लग गए और तुम अभी उड़े नहीं
क़यामत का इन्तजार कर रहे क्या ?
प्यारी चीज थी तो क्या हुआ ..
अब तो रहा नहीं ,
उस प्यार का लोभ...
अब तो छोड़ दो !
Friday, April 17, 2009
सपना
एक श्वेत श्याम सपना । जिंदगी के भाग दौड़ से बहुत दूर । जीवन के अन्तिम छोर पर । रंगीन का निशान तक नही । उस श्वेत श्याम ने मेरी जिंदगी बदल दी । रंगीन सपने ....अब अच्छे नही लगते । सादगी ही ठीक है ।
आपने सपनो को नई तरह से परिभाषित किया है...!सच है कुछ सपने श्वेत श्याम ही अच्छे .. लगते है...जैसे की पुरानी फिल्में...!ठीक है सादगी का भी अपना मज़ा है.....
आप का ब्लॉग मैं पड़ा (padhaa) अच्छा लगा अच्छा लगा कलम का प्रेम और प्रेम का कलम ........
महोदय , आप से निवेदन है कि अपनी अच्छी से अच्छी रचनाये ये मेरे ब्लॉग मंच पर दे | इसपर मैं लिखने के लिए आप को amantrit करता हूँ आशा है कि आप अपने सबद मंच पर देंगे जैसी ब्लोगेर्स आप को अधिक से अधिक पसंद कर सकते है आप का ईमेल होता तो मैं आप के देखने से पहले ही आप को उसका सदस्य bana देता आप कि कवितायेँ अच्छी लगी और उनको पड़कर और भी अच्छा नमस्कार आपका भाई अम्बरीष मिश्रा
आपकी रचना बहुत अच्छी लगी.... आपकी अगली पोस्ट का इन्तेजार है...
ReplyDelete'सादगी ही ठीक है '
ReplyDelete-सही सोच.
आप का ब्लाग बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteमैं अपने तीनों ब्लाग पर हर रविवार को
ग़ज़ल,गीत डालता हूँ,जरूर देखें।मुझे पूरा यकीन
है कि आप को ये पसंद आयेंगे।
आपने सपनो को नई तरह से परिभाषित किया है...!सच है कुछ सपने श्वेत श्याम ही अच्छे .. लगते है...जैसे की पुरानी फिल्में...!ठीक है सादगी का भी अपना मज़ा है.....
ReplyDeleteआप का ब्लॉग मैं पड़ा (padhaa)
ReplyDeleteअच्छा लगा
अच्छा लगा कलम का प्रेम
और प्रेम का कलम ........
महोदय , आप से निवेदन है कि अपनी अच्छी से अच्छी रचनाये ये मेरे ब्लॉग मंच पर दे |
इसपर मैं लिखने के लिए आप को amantrit करता हूँ
आशा है कि आप अपने सबद मंच पर देंगे जैसी ब्लोगेर्स आप को अधिक से अधिक पसंद कर सकते है
आप का ईमेल होता तो मैं आप के देखने से पहले ही आप को उसका सदस्य bana देता
आप कि कवितायेँ अच्छी लगी और उनको पड़कर और भी अच्छा
नमस्कार
आपका भाई
अम्बरीष मिश्रा
सादगी ही जीवन का अन्तिम सच है।
ReplyDelete-----------
खुशियों का विज्ञान-3
एक साइंटिस्ट का दुखद अंत
सही जा रहे हो भाई,
ReplyDeleteगांधी जी भी इसी रास्ते पर चलकर महान बनें थे,
वे रूपए तो ज्यादा न कमा सके पर हर तरह के रूपए , सिक्कों पर छा जरूर गए.
वे अपने परिवार के लिए ज्यादा कुछ क्या, कुछ भी न कर सके पर देश के लिए, हमारे, आपके लिए बहुत कुछ कर गए.
चन्द्र मोहन गुप्त