Thursday, August 15, 2019

ख़ुशी की हकीकत


ख़ुशी की हकीकत को
यहां मरते देखा है
तथाकथित व्यवस्था को
कराहते देखा है
प्रकृति को रौंद कर
ईश्वर का
गुणगान करते देखा है
रहनुमाओं द्वारा
निरीह मनई की लाशों पर
वृतचित्र को
रिलीज होते देखा है
संवेदनहीनता की पराकाष्ठा
मानवता की नीचता
तंत्र की असहिष्णुता
और तथाकथित भगवानों की
नपुंसकता को देखा है
ख़ुशी की हकीकत को
यहाँ मरते देखा है

Saturday, March 23, 2019

आज क्या नया सिखा ?


आज क्या नया सिखा ?
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@ मन करे या न करे, जरूरी कार्य की शुरुआत कर देनी चाहिए, समय के साथ कार्य में मन लगने लगता है। सुबह टहलने नहीं जाने और दिन में ज्यादा आराम करने के कारण शरीर और मन दोनों भारी लग रहा था। बिल्कुल चलने का मन नहीं था। फिर भी हिम्मत बांध कर धीरे-धीरे ही सही टहलने का निर्णय लिया। चप्पल ही पहन कर निकल गया। दिल कह रहा था लौट चल.. पर मै नहीं माना । करीब 10 मिनट बाद कुछ मज़ा आने लगा। फिर श्यामा अपार्टमेंट होते हुए जगदेव पथ की ओर निकल गया। धीरे-धीरे मन काफी प्रसन्न हो गया और शरीर में फुर्ती का अनुभव होने लगा।
@ फणीश्वारनाथ रेणु का उपन्यास "कितने चौराहे" पढ़ते हुए मुझे प्रियोदा का पात्र अच्छा लग रहा है । क्या आज हम उस तरह नहीं सोच सकते ? वैसी सादगी आज भी होनी चाहिए और स्वदेशी की अवधारणा आज भी प्रासंगिक है। इस पात्र से मुझे सादगी के साथ- साथ बचत की और प्रेरणा मिली जिसे मैंने सेफ्टी रेजर खरीदते समय अप्लाई किया।
@ बच्चों को जोश दिलाने पर वे अपना काम जल्दी कर लेते है। मेरा बेटा अनुराग अपना होम वर्क करते हुए बहुत टाल मटोल करता है। आज मैंने उसे जोश दिलाया। मैंने कहा अपना बायाँ हाथ निकालो। जब उसने ऐसा किया तो मैंने कहाँ यह तो तुम्हारे लिए बाएं हाथ का खेल है अर्थात तुम इसे मिनटों में कर सकते हो। उसका मन जोश से भर गया और वह पूर्व के आधे से भी कम समय में होम वर्क कर लिया। अब उसकी आँखे विजयी मुद्रा में चमक रही थी। कभी-कभी मै उसका जोश बढाने के लिए उसके कंधे या पीठ पर थपकी दे देता था।

Sunday, March 3, 2019

बेहया



देखो, वह कितनी बेहया है। उसके कपड़े देखो। कितनी निर्लज्जता के साथ पहना है। सारे मेलें का माहौल खराब कर रही है। एक अधेड़ उम्र की औरत ने अपनी पड़ोसिन से कहा।
वे दोनों औरते जिस लड़की के बारे में बात कर रही थी वह उन्ही के गाँव के सरपंच की पोती अनन्या थी। वह शहर में पली बढ़ी एक आधुनिक और उन्मुक्त ख़याल की लड़की थी। उसने हाफ जींस और कमीज़ पहन रखा था जिसे देखकर गाँव की कुछ औरते मुंह बिचका रही थी और मर्द जात घूर रहे थे।
ग्रामीण मेला का माहौल था। सभी कुछ न कुछ सामन खरीद रहे थे। जिस महिला ने अनन्या के बारे में बेहया कहा था उसने करीब पांच सौ रुपये का सामान ख़रीदा था। अब वह और उसकी पड़ोसिन दोनों ने घर की ओर प्रस्थान किया। रास्ते में उसका एक छोटा बटुआ जिसमे कुछ पैसे और अन्य सामान थे, गलती से गिर गए। घर पहुँचने पर जब उसे यह आभास हुआ कि छोटका बटुआ नहीं है। वह छाती पीट-पीट कर विलाप करने लगी। तभी अनन्या आती हुई दिखाई दी। उसके हाथ में वहीं बटुआ था। अनन्या ने बटुआ उस औरत को दे दिया। उसमे सभी चीज सही सलामत था। अनन्या ने बताया कि बटुआ में आपके 'आधार' का एक फोटोकॉपी था । उसीसे पता चल पाया कि यह आपका है। इतना कह कर अनन्या चली गयी।
वह उसका धन्यवाद भी नहीं कर पायी। उसकी बेहया वाली सोच पर प्रश्नवाचक चिह्न लग गया था।
अन्दर से 'बेहया' के लिए केवल दुआ ही निकल रहा था।

Sunday, January 20, 2019

जिंदगी


जिंदगी
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एक आशा लिए
कर्तव्य पथ पर
भागता एक पथिक
थक कर सोता नहीं
क्योंकि
वह जिन्दा है।
हर दिन
सुबह की किरण
हमें जागृत करती है
लगातार
अनंत काल से
वह भी थकी नहीं
क्योंकि
वह ज़िंदा है।
मुस्कराहट
जीवन की दौड़ में
पथरीली राह में
अँधेरी रात में
रौशनी देती है
क्योंकि
वह जिन्दा है।