Tuesday, July 7, 2009

पुआल

पुआल को देखे ज़माना हो गया । बचपन में देखा था । क्या दिन थे....पुआल पर ही खाना और सोना भी होता था । खूब जमकर खेलते और कूदते थे ।
आज तो सिंथेटिक का ज़माना है । उस बेचारे का क्या काम ?आज तो गाय बैलों को भी नशीब नही होता ...हमें कैसे होगा ?
हाँ जिस दिन सिंथेटिक हमें ले डूबेगा उस दिन उसकी बहुत याद आनेवाली है ।

4 comments:

  1. wah bhai aapne gav ki yaad dila di........

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  2. 'पुआल को देखे ज़माना हो गया । बचपन में देखा था । क्या दिन थे....पुआल पर ही खाना और सोना भी होता था । खूब जमकर खेलते और कूदते थे ।'
    - इन पंक्तियों से अपनी धरती की सोंधी सुगंध आती है.

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  3. pual ko pdhakar aisa lga mano puaal me abhi abhi kachhi kairiya rkhi hai pakne ke liye .vah purani yade taja kar di.
    dhnywad

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