Saturday, August 6, 2011

''मनुष्य से श्रेष्ठ कुछ भी नही ''

कहीं पढ़ा था ''मनुष्य से श्रेष्ठ कुछ भी नही ।'' मै भी इस मानव यात्रा का एक पथिक हूँ । पथ की पहचान अभी करनी है । इर्ष्या से ग्रषित नही होना चाहता । गर्व से दूषित भी नही होना चाहता ।
क्या करू?.... अज्ञानता जाती ही नही ।
पाषाण की कठोर छाती को चिर कर अज्ञात पाताल से रस खीचना चाहता हूँ । निरंतर उर्ध्वगामी होना चाहता हूँ ।
क्या करू ?...संवेदनशीलता है ही नही ।

4 comments:

  1. बहुत सुंदर.... विचारणीय बात

    ReplyDelete
  2. धन्यवाद मोनिका जी ....

    ReplyDelete
  3. रचना के माध्यम से सटीक बात
    मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये

    ReplyDelete
  4. संजय जी आपको भी फ्रेंडशिप डे की शुभकामना

    ReplyDelete