Sunday, January 16, 2011

पथिक

कहीं पढ़ा था ''मनुष्य से श्रेष्ठ कुछ भी नही ।'' मै भी इस मानव यात्रा का एक पथिक हूँ । पथ की पहचान अभी करनी है । इर्ष्या से ग्रषित नही होना चाहता । गर्व से दूषित भी नही होना चाहता ।
क्या करू?.... अज्ञानता जाती ही नही ।
पाषाण की कठोर छाती को चिर कर अज्ञात पाताल से रस खीचना चाहता हूँ । निरंतर उर्ध्वगामी होना चाहता हूँ ।
क्या करू ?...संवेदनशीलता है ही नही ।

11 comments:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  2. बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर .....बहुत खूबसूरत हैं.
    कभी समय मिले तो हमारे ब्लॉग//shiva12877.blogspot.com पर भी अपनी एक दृष्टी डालें .... धन्यवाद

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  3. मन और ह्रदय से सच्ची बात निकल रही है ....

    कम शब्दों में एक तड़पन दिल को छू पाने में समर्थ है ||

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  4. कहीं पढ़ा था ''मनुष्य से श्रेष्ठ कुछ भी नही ।'
    और ये भी सच है की इंसान चाहे तो सब कुछ कर सकता है ... प्रयास करना निरंतर जारी रखें .....

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  5. कम शब्दों में ही तड़पन दिल को छू पाने में समर्थ है| धन्यवाद

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  6. bilkul sahi kaha - मनुष्य से श्रेष्ठ कुछ भी नही

    sundar vichaar
    sundar post
    aabhaar

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  7. बिल्कुल सही कहा है आपने।

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  8. ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.

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  9. आपका चिन्तन बहुत सार्थक और विचारणीय है।

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