कहीं पढ़ा था ''मनुष्य से श्रेष्ठ कुछ भी नही ।'' मै भी इस मानव यात्रा का एक पथिक हूँ । पथ की पहचान अभी करनी है । इर्ष्या से ग्रषित नही होना चाहता । गर्व से दूषित भी नही होना चाहता ।
क्या करू?.... अज्ञानता जाती ही नही ।
पाषाण की कठोर छाती को चिर कर अज्ञात पाताल से रस खीचना चाहता हूँ । निरंतर उर्ध्वगामी होना चाहता हूँ ।
क्या करू ?...संवेदनशीलता है ही नही ।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर .....बहुत खूबसूरत हैं.
ReplyDeleteकभी समय मिले तो हमारे ब्लॉग//shiva12877.blogspot.com पर भी अपनी एक दृष्टी डालें .... धन्यवाद
मन और ह्रदय से सच्ची बात निकल रही है ....
ReplyDeleteकम शब्दों में एक तड़पन दिल को छू पाने में समर्थ है ||
कहीं पढ़ा था ''मनुष्य से श्रेष्ठ कुछ भी नही ।'
ReplyDeleteऔर ये भी सच है की इंसान चाहे तो सब कुछ कर सकता है ... प्रयास करना निरंतर जारी रखें .....
विचारणीय ....
ReplyDeleteकम शब्दों में ही तड़पन दिल को छू पाने में समर्थ है| धन्यवाद
ReplyDeletebilkul sahi kaha - मनुष्य से श्रेष्ठ कुछ भी नही
ReplyDeletesundar vichaar
sundar post
aabhaar
very nice post dear...good going
ReplyDeleteLyrics Mantra
Music Bol
बिल्कुल सही कहा है आपने।
ReplyDeleteब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
ReplyDeleteआपका चिन्तन बहुत सार्थक और विचारणीय है।
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