Friday, January 14, 2011

चुपके से....

दिन ढलने के बाद !
चुपके से शाम आ जाती है
कुछ पता ही नहीं चलता
हम देखते रह जाते है !

5 comments:

  1. प्राकृतिक लीला को चुपचाप देखने के अलावा हम कर ही क्या सकते हैं।

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  2. A philosopher had said, it's better to be a part of play than to be in audience.

    Nice couplet.

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  3. बहुत ख़ूब... लिखते रहिए...

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  4. इसी को तो प्रकृति .. या ईश्वर कहते हैं ...

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