Monday, August 13, 2012

सिर दर्द

सिर दर्द कि बिमारी भी बड़ी अजीब है ,कुछ न करने देती है न कुछ सोचने देती .खाने और घुमने का मन तो बिलकुल नहीं करता .कोई उपयोगी काम तो कर नहीं सकते . केवल कुछ हलके फुल्के ढंग से सोच सकते है ...तिल को ताड़ बना सकते है . बीती बाते याद कर सकते है और जीवन संघर्ष को अनुभव कर सकते है ...सुबह से परेशान था और निष्क्रिय अवस्था में सोचने का कार्यक्रम जारी था , पर हल्के फुल्के तरीके से .....
कुछ खुरापाती चिंतन को आपसे शेयर कर रहा हूँ .....

उपहास आदमी को आदमी बना देता है . आपके अंदर अपने उपहास को सहने का साहस है तो फिर आप हर बाधा को पार कर सकते है . निष्पक्ष तरीके से निर्णय ले सकते है . सत्य को समझ और जान सकते है ....उपहास सहने का साहस ही आपको धैर्यवान बना देता है तब आप किसी दुसरे का उपहास कभी नहीं करते है . किसी को उपहास का निशाना बनाना अपने ऊपर उपहास करना है .

किसी अनजानी सी जगह भाग जाऊ और वहीँ पर शिक्षा के ऊपर अपने प्रयोगों मूर्त रूप दूँ ...मैकाले की शिक्षा की सर्जरी कर दूं ,गांधी और टैगोर के विचारों पर आधारित शिक्षा को नए सन्दर्भ में कार्यान्वित करूँ .शिक्षा के उत्पाद का भारतीयकरण कर दूं ....भारतीय शिक्षा में मानवता का पुट भर दूं ... बिना समय बर्बाद किये ऐसी जगह की खोज में लग जाऊं और उसे सर्वश्रेष्ठ सर्जनात्मक प्रयोग स्थली के रूप में प्रसिद्ध कर दूं .

खुली प्रकृति के मध्य बेरोक टोक घुमने का अपना ही मज़ा है .यह मुक्ति का पहला मार्ग है .तब क्यों न इस प्राकृतिक रंगोत्सव का आनंद लिया जाय .अब इन कृत्रिम संसाधनों से नैराश्य का भाव उत्पन्न होने लगा है ....ताजगी हवा नहीं मिलती . प्रदूषित लोग और दूषित विचार के संपर्क से मन तिलमिला जाता है ...ये वैराग्य का आरम्भ तो नहीं !....खुदा जाने .

5 comments:

  1. दूषित जल, हवा, मिट्टी आदि से बहुत ज्यादा खतरनाक है - दूषित विचार।

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  2. लेख अच्छा है बधाई

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  3. सही कहा आपने
    किसी को उपहास का निशाना बनाना अपने ऊपर उपहास करना है .
    सुंदर प्रस्तुति !

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  4. सार्थक चिंतन... शुभकामनायें

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  5. मन के एहसास शब्दों में उतारे हैं ...
    पर इस शिक्षा पद्धति को अब भारत में बदलना आसान न होगा ...

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