अपना जहाँ ख़ुद ही खो दिया
अब भटक रहा हूँ
कैसे ?खो दिया
ये भी पता नही
साँसे थम गई
आवाज......
वो भी गुम हो गई
मेरी मंजिल तो मिली नही
दुसरे का ढूढ़ रहा हूँ
अपने ही घर में आग लगाया
अब पानी खोज रहा हूँ
अँधेरी रात को अपनाया
और भटक गया
अब चाँद से उजाला मांग रहा हूँ
अपना जहाँ ख़ुद ही खो दिया
अब भटक रहा हूँ
bahut achhi rchna apki rchnao me kafi pripkvata a gai hai.badhai .likhte rhe .
ReplyDeleteDil ki aawaaz ko saaf suna ja sakta hai.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
khud nahi khote hum...jan ke apna jaha kon khoyega....kismat me jo likha wahi hota hai...log nahak khud ko ya kisi ko dosh dete hai......
ReplyDeleteमन के भाव हैं ...अच्छे लगे ....अगली बार और बेहतर की उम्मीद ....!
ReplyDeletemark rai sahab aapke man ke ye bhaav bahut achche lage hamare man ko bhii khoob bhaaye........
ReplyDeleteअपने ही घर में आग लगाया
ReplyDeleteअब पानी खोज रहा हूँ
- अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत.
bhaav he/ shbdo ko piro do to maza aajayega/
ReplyDeleteSeedhe dil men utar gaye aapke jazbaat.
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत और दिल को छू लेने वाली रचना लिखा है आपने!
ReplyDeletebahut hi sundar abhivyakiti.....
ReplyDeleteare RAI ji ise MARK kar lijiye ki jo kuch khotaa hai woh bahut kuch paataa hai.isi liye apni rachnaaon mai khone ke bhaav jyaadaa daaliye.
ReplyDeletejhallevichar.blogspot.com
jhalli-kalam-
angrezi-vichar.blogspot.com
आपके भाव बहुत ही संदर हैं, मौलिक हैं ..............और मेरा मानना है, भाव हों तो रचना अच्छी हो ही जाती है.......... बहुत लाजवाब लिखा है
ReplyDelete"अपने ही घर में आग लगाया
ReplyDeleteअब पानी खोज रहा हूँ"
ये पंक्तियां बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....
amazing poem mark.. very good work of words... ek kashish si hai ....aur likhiye ....
ReplyDeletevijay
pls read my new poem "झील" on my poem blog " http://poemsofvijay.blogspot.com
bahut hi sundar rachna.....
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