पुआल को देखे ज़माना हो गया । बचपन में देखा था । क्या दिन थे....पुआल पर ही खाना और सोना भी होता था । खूब जमकर खेलते और कूदते थे ।
आज तो सिंथेटिक का ज़माना है । उस बेचारे का क्या काम ?आज तो गाय बैलों को भी नशीब नही होता ...हमें कैसे होगा ?
हाँ जिस दिन सिंथेटिक हमें ले डूबेगा उस दिन उसकी बहुत याद आनेवाली है ।
wah bhai aapne gav ki yaad dila di........
ReplyDelete'पुआल को देखे ज़माना हो गया । बचपन में देखा था । क्या दिन थे....पुआल पर ही खाना और सोना भी होता था । खूब जमकर खेलते और कूदते थे ।'
ReplyDelete- इन पंक्तियों से अपनी धरती की सोंधी सुगंध आती है.
pual ko pdhakar aisa lga mano puaal me abhi abhi kachhi kairiya rkhi hai pakne ke liye .vah purani yade taja kar di.
ReplyDeletedhnywad
Mitti ki yaad taza karaati post hai aapki....
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