एक अनजान आदमी
नदी की धारा के साथ बहता हुआ
कल्पनातीत ख्यालों में डूबा
लहरों से बातें करता हुआ
थपेड़ों को चीरता
चला जा रहा है !
अचानक
कुछ सकुचाता हुआ
लहरों को छू लिया
अब व्यग्र हो सोच रहा
कहीं लहरें मैली तो नहीं हो गयी
उसके स्पर्श से !
नदी की धारा के साथ बहता हुआ
कल्पनातीत ख्यालों में डूबा
लहरों से बातें करता हुआ
थपेड़ों को चीरता
चला जा रहा है !
अचानक
कुछ सकुचाता हुआ
लहरों को छू लिया
अब व्यग्र हो सोच रहा
कहीं लहरें मैली तो नहीं हो गयी
उसके स्पर्श से !
कम से कम इतनी चेतना तो बची थी कि उसने सोचा लहरें तो मैली नहीं हो गईं ..... आज कल तो लोग जानबूझ कर मैला कर देते हैं ... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeletesahi kaha Sangeeta ji ne ...sundar prastuti ke liye badhai ...!!
ReplyDeleteकाश की ये संकोच और व्यग्रता हर इंसान को महसूस होती... गहन भाव
ReplyDeleteउम्दा कविता |
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
अनु
Bahut Khoob.....Arthporrn
ReplyDeleteक्यों ...इतनी हीन भावना क्यों...!!!!!
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति..
ReplyDelete:-)
नई सोच को दिशा देती रचना ... बहुत खूब ...
ReplyDeleteक्या बात है !
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति !