Tuesday, September 11, 2012

हे किशन ( आत्म साक्षात्कार )

हे किशन ,
यातना से क्या घबराना
दुःखों से क्या भागना
आओ साहित्य रचे
शब्दों को अमर कर दे
आओ विषपान करें
और नीलकंठ बन जाएँ !

आओ उस राह चलें
जो मुक्ति मार्ग हो
इस मुक्ति की राह पर
अपने को कुर्बान कर दें
एक नया अम्बर निर्माण करें !

आओ काँटों को चुनकर
उसे कला का नाम दें
मन में
आस्था का संचार करें
परिवर्तन बिन जीवन निस्तेज है
आओ परिवर्तन का गुणगान करें !


13 comments:

  1. दुविधाएं आती हैं जाती हैं .. जो साहस रखता है उसका सूरज चमकता है ... बहुत खूब ...

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  2. परिवर्तन बिन जीवन निस्तेज है
    आओ परिवर्तन का गुणगान(संग साथ-साथ)करें !!
    हौसले को दाद देती हूँ !!

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  3. आओ मिलकर एक नया अम्बर निर्माण करें....
    बहुत सुन्दर विश्वास से भरी सशक्त रचना...

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  4. परिवर्तन के बिना ये जीवन भी अधूरा है

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  5. आओ काँटों को चुनकर
    उसे कला का नाम दें
    मन में
    आस्था का संचार करें
    परिवर्तन बिन जीवन निस्तेज है
    आओ परिवर्तन का गुणगान करें !
    ..बहुत सुन्दर सकारात्मक सन्देश देती रचना

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  6. नवसृजन को प्रेरित करती सोच

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  7. विकास के लिए परिवर्तन जरुरी है..
    सुन्दर रचना....
    :-)

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  8. आज 18/09/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!

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  9. बहुत सुन्दर और प्रभावपूर्ण रचना...

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  10. जीवन का लाजबाब रंग प्रस्तुत किया है आपने.
    अच्छी और प्रेरक प्रस्तुति.
    आभार,मार्क राय जी.

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  11. आस्था का संचार...!
    प्रेरक रचना।

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