हे किशन ,
यातना से क्या घबराना
दुःखों से क्या भागना
आओ साहित्य रचे
शब्दों को अमर कर दे
आओ विषपान करें
और नीलकंठ बन जाएँ !
आओ उस राह चलें
जो मुक्ति मार्ग हो
इस मुक्ति की राह पर
अपने को कुर्बान कर दें
एक नया अम्बर निर्माण करें !
आओ काँटों को चुनकर
उसे कला का नाम दें
मन में
आस्था का संचार करें
परिवर्तन बिन जीवन निस्तेज है
आओ परिवर्तन का गुणगान करें !
दुविधाएं आती हैं जाती हैं .. जो साहस रखता है उसका सूरज चमकता है ... बहुत खूब ...
ReplyDeleteपरिवर्तन बिन जीवन निस्तेज है
ReplyDeleteआओ परिवर्तन का गुणगान(संग साथ-साथ)करें !!
हौसले को दाद देती हूँ !!
आओ मिलकर एक नया अम्बर निर्माण करें....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विश्वास से भरी सशक्त रचना...
Wah!
ReplyDeleteपरिवर्तन के बिना ये जीवन भी अधूरा है
ReplyDeleteआओ काँटों को चुनकर
ReplyDeleteउसे कला का नाम दें
मन में
आस्था का संचार करें
परिवर्तन बिन जीवन निस्तेज है
आओ परिवर्तन का गुणगान करें !
..बहुत सुन्दर सकारात्मक सन्देश देती रचना
नवसृजन को प्रेरित करती सोच
ReplyDeleteसुन्दर सृजन |आभार
ReplyDeleteविकास के लिए परिवर्तन जरुरी है..
ReplyDeleteसुन्दर रचना....
:-)
आज 18/09/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और प्रभावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteजीवन का लाजबाब रंग प्रस्तुत किया है आपने.
ReplyDeleteअच्छी और प्रेरक प्रस्तुति.
आभार,मार्क राय जी.
आस्था का संचार...!
ReplyDeleteप्रेरक रचना।