आशा के पर लग गए और तुम अभी उड़े नहीं
क़यामत का इन्तजार कर रहे क्या ?
प्यारी चीज थी तो क्या हुआ ..
अब तो रहा नहीं ,
उस प्यार का लोभ...
अब तो छोड़ दो !
Tuesday, February 21, 2012
रंगीली दुनिया बेरंग क्यों लगती है ?
रंगीली दुनिया कभी बेरंग क्यों लगती है ?
ज़िन्दगी इतनी छोटी है ,फ़िर लम्बी क्यों लगती है ?
इंसान दयालु से हैवान कैसे बन जाता है ?
कोई क्यों किसी को छोड़ कर चला जाता है ?
.....अंत में सब शून्य ही क्यों दीखता है ?
शून्य ही तो आरम्भ है... जीवन के हर रंग का अपना महत्त्व है...
ReplyDeletesandhya ji........har rang ka apna mahtw hai aur..black and white ke to kya kahne...
DeleteIn mese kisee bhee sawal ka jawaab nahee milta!
ReplyDeleteji kshama ji....ye sawal anutarit hai...
Deleteप्रश्न गंभीर हैं लेकिन जवाब किसके पास है...
ReplyDeleteनीरज
thanks ....ekdam sahi kaha aapne iska jawab hamaare paas nahi ham sirf ...awlokan kar sakte hai...
Deleteसब कुछ शून्य से उत्पन्न हुआ है और अंत में शून्य में ही विलीन होना है तो सब कुछ शून्य दिखेगा ही !
ReplyDeleteअच्छी पंक्तियां।
thanks Verma ji....shuny me vilin ho hi jana hai fir bhi ham sab bhaagte rahte hai....
Deleteविचारणीय , पर जीवन का फलसफा तो यही है.....
ReplyDeletebilkul sahi kaha aapne...jiwan ka falsafaan to yahi hai...
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