Friday, September 23, 2011

अब मुस्कुरा भी दो...

मेरा हर ख्वाब तुमसे है । ख़्वाबों में तुझे ही हर रोज पाता हूँ ।
.....और तुम गुमसुम बैठी हो । ये ठीक नही है ....अब मुस्कुरा भी दो ।
मुझे अच्छा लगेगा ।
तुझे देख कर ही तो ख्वाब बुनता हूँ । कैसे तोड़ दूँ ?
ख़्वाबों में ही तुझे तराशा है । कड़ी मेहनत से एक मूरत बनी है ।
कैसे छोड़ दूँ ?
तेरी चमकीली आँखें ...मेरे सपनों की बुनियाद है ।
अब आ जाओ ...देर न करो । ये ठीक नही है ।

9 comments:

  1. Behad sundar rachana...chhot-si,pyaree-si!

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  2. सुंदर भाव की रचना

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  3. मान-मनुहार के भाव..
    सुंदर लिखा है आपने।

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  4. aap sabhi ka bahut bahut dhanywaad...

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  5. बहुत खूब ... ख़्वाबों में तो हर रोज मिलता ही हूँ ... कभी प्रत्यक्ष भी मिलो ... लाजवाब ख्याल की अभिव्यक्ति ,...

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  6. thanks digamber ji....abhi to khwaabo me hi thik hai....

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  7. बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! हर एक शब्द लाजवाब है! शानदार प्रस्तुती!
    आपको एवं आपके परिवार को नवरात्रि पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !

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  8. dhanywaad Babli ji...kaphi dino baad .....aapko bhi navraatr ki shubh kaamna...

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  9. आपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !

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