Sunday, March 3, 2019

बेहया



देखो, वह कितनी बेहया है। उसके कपड़े देखो। कितनी निर्लज्जता के साथ पहना है। सारे मेलें का माहौल खराब कर रही है। एक अधेड़ उम्र की औरत ने अपनी पड़ोसिन से कहा।
वे दोनों औरते जिस लड़की के बारे में बात कर रही थी वह उन्ही के गाँव के सरपंच की पोती अनन्या थी। वह शहर में पली बढ़ी एक आधुनिक और उन्मुक्त ख़याल की लड़की थी। उसने हाफ जींस और कमीज़ पहन रखा था जिसे देखकर गाँव की कुछ औरते मुंह बिचका रही थी और मर्द जात घूर रहे थे।
ग्रामीण मेला का माहौल था। सभी कुछ न कुछ सामन खरीद रहे थे। जिस महिला ने अनन्या के बारे में बेहया कहा था उसने करीब पांच सौ रुपये का सामान ख़रीदा था। अब वह और उसकी पड़ोसिन दोनों ने घर की ओर प्रस्थान किया। रास्ते में उसका एक छोटा बटुआ जिसमे कुछ पैसे और अन्य सामान थे, गलती से गिर गए। घर पहुँचने पर जब उसे यह आभास हुआ कि छोटका बटुआ नहीं है। वह छाती पीट-पीट कर विलाप करने लगी। तभी अनन्या आती हुई दिखाई दी। उसके हाथ में वहीं बटुआ था। अनन्या ने बटुआ उस औरत को दे दिया। उसमे सभी चीज सही सलामत था। अनन्या ने बताया कि बटुआ में आपके 'आधार' का एक फोटोकॉपी था । उसीसे पता चल पाया कि यह आपका है। इतना कह कर अनन्या चली गयी।
वह उसका धन्यवाद भी नहीं कर पायी। उसकी बेहया वाली सोच पर प्रश्नवाचक चिह्न लग गया था।
अन्दर से 'बेहया' के लिए केवल दुआ ही निकल रहा था।

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