Thursday, May 26, 2011

.मै वह अन्धकार बन गया हूँ ...........

कहने को तो ..... नीला आसमान मेरे चारो तरफ़ लहरा रहा है । पर मेरे लिए एक मुठ्ठी भर भी नही बचा ।
चाहत तो एक मुठ्ठी भर आसमाँ की ही थी । वह भी मुअस्सर नही ।
सूरज की किरणे मुझ पर भी वैसे ही पड़ती है , जैसे दूसरो पर गिरती है । मुझमे गर्मी पैदा करने की
ताकत उसमे नही ।
कौन जानता ...मै वह अन्धकार बन गया हूँ , जिस पर उजाले का कोई असर नही ।

3 comments:

  1. कभी-कभी जिंदगी में ऐसी स्थिति भी आती है .....

    ..........भावपूर्ण प्रस्तुति

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  2. भावपूर्ण कविता ....

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  3. Khoobsoorat magar gamgeen rachana! Zindagee me aise mauqe aahee jate hain jab sab kuchh bemaanee lagta hai...

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